कैसे कहकर थे फूट पड़े छोडो अकेला मुझे प्रिये
इस प्रेम भिक्षु को ठुकरा कर मत दूर करो प्रस्थान प्रिये
नवनव भंगिनी प्रणयमुद्राओं से करो सूनी रजनी
थिरकते गीत की विविध रागरागिनी रचोगी कब सजनी।
दर्पण में बिंबित विविध रमनमुद्राएँ घटित करो रानी
पदपूर्ति समस्यायें बूझेगा कौन पहेली की वाणी?
जा लीलासर्जक ! विकला बावरिया बरसाने वाली
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली॥ ३०॥
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सुधि करो प्राण कहते थे तुम क्यों बातबात में हंसती हो
किस कलुषित कंचन को मेरे निज हास्यनिकष पर कसती हो
तुम होड़ लगा प्रिया उपवन की सुरभित कलियाँ चुन लेते थे
सखियों से होती मदनरहसबातें चुपके सुन लेते थे
सहलाते थे मृदु करतल से रख उर पर मेरे मृदुल चरण
प्रियपाणिपार्श्व से झुका स्कंध रख देते आनन पर आनन
धंस डूब मरे हा ! जाय कहाँ बावरिया बरसाने वाली
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली॥ ३१॥