पट खटका खटका पीडा देती सन्देश तुम्हे मधुकर
बौरे निशितम मे भी तेरा जाग रहा प्रियतम निर्झर
प्रेममिलन हित बुला रहा है जाने कब से सुनो भला
टेर रहा सन्देशशिल्पिनी मुरली तेरा मुरलीधर॥२५६॥

अंह तुम्हारा ही तेरा प्रभु वन चल रहा साथ मधुकर
बन्दी हो उससे ही जिसका स्वयं किया सर्जन निर्झर
प्रभु न दीख पडते प्रतिदिन बीतते जा रहे नाच नचा
टेर रहा है अहं अलिप्ता मुरली तेरा मुरलीधर ॥२५७॥

कठिन बंधशर्ते जग में जो तुम्हें प्रेम करते मधुकर
किन्तु तुम्हारे प्राणेश्वर का  रखता मुक्त प्रेम निर्झर
ओझल रह बांधता नही वह उस दिशि बहता प्रेम स्वयं
टेर रहा है स्वयंस्वरुपा मुरली तेरा मुरलीधर॥२५८॥

गीत गवाये कितने उसने तुमसे छ्ल करके मधुकर
कितने खेल खिलाकर सुख के रुला अश्रु जल से निर्झर
हाथ लगा फ़िर हाथ न आया अब ले मांगचरण आश्रय
टेर रहा लीलाविहारिणी मुरली तेरा मुरलीधर ॥२५९॥

पकडे जाओ प्रेम करो से आश लगाये रह मधुकर
देर बहुत हो गयी सत्य बन आये दोष बहुत निर्झर
सजा झेल लेना सहर्ष प्रभु हाथ साथ छोडना नही
टेर रहा करतलावलम्बी मुरली तेरा मुरलीधर ॥२६०॥