पी कहाँ पी कहाँ रटे जा रहा था पपीहरा उत्पाती
घन गरजगरज इंगित करते लाये मनमोहन पाती
मल्लिका
मंजू पर मचल रहे श्यामल मिलिंद मतवारे थे
नवकमल दण्ड मृदु दबा चंच में उड़े हंस सित प्यारे थे
थी बिछड़ गयी लावण्यमयी श्री राधामाधव की जोरी
कर पल्लव जोड़ पुकार उठी वृषभान किशोरी अतिभोरी
क्यों भूल गए प्राणेश! विकल बावरिया बरसाने वाली
क्या
प्राण निकलने पर आओगे जीवनवन के वनमाली

भर रही अंग में थी अनंगमद सिहर लहर पुरवईया की
लगता कदम्ब की डालडाल पर मुरली बजी कन्हैया की
घन की बूँदों ने भिंगो दिया कीर्तिदा कुमारी की काया
प्रिय संग घटी वृन्दावन की सुधियों का ज्वर उमड़ आया
केकीनर्तन था इधर, उधर थिरकती जलद में थी चपला
नभ अवनिबीच घी धूम रहे चुप कैसे, चीख उठी अबला
हो ललित त्रिभंग! कहाँ विकला बावरिया बरसाने वाली
क्या
प्राण निकलने पर आओगे जीवनवन के वनमाली