Mango-tree

घन अमरईया में विरमि चिरइया सुगना-मयन भरि प्रीत रे !
पुलकि अरुन जुग चोंचिया पसरलैं गावत मनहर गीत रे ॥
राजिव न्यना कवन बने भ्रमलैं भिलनी केवटवा कै मीत रे ।
कहाँ मधुबनवाँ में नचलैं मोहनवा धरती देखाव पुनीत रे ॥

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पँखिया पसार हो विहँग आवा उड़ि चलीं ॥
इहै बरसनवा की साँकरि खोरी
माधव राधा की मनहर जोरी ।
बरसै बँसुरिया की अमिरित धार हो, विहँग आवा उड़ि चलीं ॥

तृण-दल चरलीं इहैं धावरि गइया
इहवैं क माटी खइलैं कुँवर कन्हइया ।
काली मथन इवहैं अपरमपार हो, विहँग आवा उड़ि चलीं ॥

इहवैं ठुमुकि नचलैं यशुदा कै लाला
रास रचवलैं इहवैं काली कमली वाला ।
इहवैं कदम छहियाँ बिरिज बहार हो, विहँग आवा उड़ि चलीं ॥ 
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बाबूजी कऽ एगो कविता प्रस्तुत बा। ई हऽ पहली कड़ी। दूसरी में कविता पूरी होई। जइसे-तइसे भोजपुरी लिख के गावै-बजावै वालन से अलग भोजपुरी, साहित्यिक संसकार में पगल भोजपुरी लिखे के हिमायती हउअँ हमार बाबूजी। आपन स्कूल खातिर बहुत लिखलन, ओही डायरी में लिखल कवितन में से इहाँ प्रस्तुत करत हईं। हमके तऽ एतने भोजपुरी लिखे में बहुते प्रयास करे के पड़ल हऽ, पूरा औघड़ हईं हम तऽ –

चिरई धरतिया ई जग कै परान रे ॥

एहि ठहियाँ बनरा हिलवलैं सुमेरू
तिरिया गोहरिया पै जुझलैं पखेरू ।
सगरा पै पथरा कै अबहीं निसान रे —
चिरई धरतिया ई जग कै परान रे ॥

इहवैं केवटवा कै सुर-सरि उतरू
जूठन खइलैं भिलनियाँ कऽ दुलरू ।
सिंह हिरन सँगवा करैं जलपान रे…
चिरई धरतिया ई जग कै परान रे ॥

बन-बन डुहरलैं नयनवा की पुतरी
धुरिया परसि शिला भइ तिया सुन री ।
इहवैं कुँवर कईलैं धनुष सँधान रे…
चिरई धरतिया ई जग कै परान रे ॥
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जारी…..

Last Update: April 11, 2024