उसके संग संग मिट जाते सभी उदासी स्वर मधुकर
फूल हॅंसी के नभ से भू पर झरते हैं झर झर निर्झर
उसके नयन जलद कर देते प्राण दुपहरी को पावस
टेर रहा है हृदयाह्लादिनि मुरली   तेरा    मुरलीधर।।201।।

कौन तुला जिस पर तौलेगा उसका अपनापन मधुकर
जैसा वह गा रहा कौन वैसा गाने वाला निर्झर
हर स्वर उसकी ही पद पैजनि हर द्युति उसकी ही चपला
टेर रहा है सर्वास्वादा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।202।।

पग पग पर चल रहा संग तेरी अंगुली थामे मधुकर
क्षण क्षण पूछ रहा मुस्काता तेरा क्षेम कुशल निर्झर
स्वयं भॅंवर में कूद खे रहा तेरी जीवन जीर्ण तरी
टेर रहा है सदासंगदा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।203।।

रे बौरे वासना वाटिका में न ठिठक जाना मधुकर
रीझ किसी छलना छाया पर मन मत ललचाना निर्झर
बुला रही है प्राणेश्वर की शीतल सुखद अंक छाया
टेर रहा है प्राणशरण्या मुरली   तेरा    मुरलीधर।।204।।

उसकी पीर न सोने देगी उमड़ेंगे लोचन मधुकर
अकुलायेंगे प्राण अकेले में बेसुध हो हो निर्झर
अरुण उषा की प्रथम पुलक सी अंग अंग कर रोमांचित
टेर रहा उच्छ्वसितअंतरा मुरली   तेरा    मुरलीधर।।205।।
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अन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
# प्राणों के रस से सींचा पात्र : बाउ (गिरिजेश भईया की लंठ-महाचर्चा)