मंदस्मित करुणा रसवर्षी वह अद्भुत बादल मधुकर
मृदु करतल सहला सहला सिर हरता प्राण व्यथा निर्झर
मनोहारिणी चितवन से सर्वस्व तुम्हारा हर मनहर
टेर रहा है उरविहारिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।11।।

विविध भाव सुमनों की अपनी सजने दे क्यारी मधुकर
कोना कोना सराबोर कर बहे वहाँ सच्चा निर्झर
वह तेरे सारे सुमनों का रसग्राही आनन्दपथी
टेर रहा सर्वांतरात्मिका मुरली तेरा मुरलीधर।।12।।

मॅंडराते आनन पर तेरे उसके कंज नयन मधुकर
तृषित चकोरी सदृश देख तू उसका मुख मयंक निर्झर
युगल करतलों में रख आनन कर निहाल तुमको अविकल
टेर रहा है मन्मथमथिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।13।।

सब प्रकार मेरे मेरे हो गदगद उर कह कह मधुकर
युग युग से प्यासे प्राणों में देता ढाल सुधा निर्झर
भरिता कर देता रिक्ता को बिना दिये तुमको अवसर
टेर रहा है नादविग्रहा मुरली तेरा मुरलीधर।।14।।

माँग माँग फैला कर अंचल बिलख विधाता से मधुकर
लहरा दे कुरुप जीवन में वह अभिनव सुषमा निर्झर
उसकी लीला वही जानता ढरकाता रस की गगरी
टेर रहा है प्रेमभिक्षुणि मुरली तेरा मुरलीधर।।15।।

गहन तिमिर में दिशादर्शिका हो ज्यों दीपशिखा मधुकर
मरु अवनी की प्राण पिपासा हर लें ज्यों नीरद निर्झर
तथा मृतक काया में पंकिल भर नव श्वाँसों का स्पंदन
टेर रहा है नित्य नूतना मुरली तेरा मुरलीधर।।16।।

लघु जलकणिका को बाहों के पलने में ले ले मधुकर
हलराता दुलराता रहता ज्यों अविराम सिंधु निर्झर
बिन्दु बिन्दु में प्रतिपल स्पंदित तथा तुम्हारा रत्नाकर
टेर रहा है स्वजनादरिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।17।।

चिन्तित सोच विगत वासर क्यों व्यथित सोच भावी मधुकर
प्रवहित निशि वासर अनुप्राणित नित्य नवल जीवन निर्झर
पल पल जीवन रसास्वाद का तुम्हें भेंज कर आमंत्रण
टेर रहा है प्रियागुणाढ्या मुरली तेरा मुरलीधर।।18।।

गत स्मृतियों को जोड जोड क्यों दौड रहा मोहित मधुकर
सुधा नीरनिधि छोड बावरे मरता चाट गरल निर्झर
फंस किस आशा अभिलाषा में व्यर्थ काटता दिन पंकिल
टेर रहा है मधुरमाधवी मुरली तेरा मुरलीधर।।19।।

गूँथ प्राणमाला मतवाला आनेवाला है मधुकर
अति समीप आसीन तुम्हारे ही तो तेरा रस निर्झर
बड़भागिनी तुम्हें कर देगा ललित अंक ले वनमाली
टेर रहा है मनोहारिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।20।।