सो कर नहीं बिता वासर दिन रात जागता रह मधुकर
जो सोता वह खो देता है मरुथल में जीवन निर्झर
सर्वसमर्पित कर इस क्षण ही साहस कर मिट जा मिट जा
टेर रहा सर्वार्तिभंजिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।21।।

सोच रहा क्या देख देख कितना प्यारा मनहर मधुकर
मात्र टकटकी बाँध देखते उमड़ पड़ेगा रस निर्झर
जीवन के प्रति रागरंग का तुम्हें सुना संगीत ललित
टेर रहा है मंजुमोहिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।22।।

देख रहा जो उसे देखने का संयोग बना मधुकर
दिशा शून्य चेतना खोज ले रासविहारी रस निर्झर
पर से निज पर ही निज दृग की फेर चपल चंचल पुतली
टेर रहा स्वात्मानुसंधिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।23।।

तेरे अधरों का गुंजन वह गीत वही स्वर वह मधुकर
उसे निहार निहाल बना ले पंकिल नयनों का निर्झर
थक थक बैठ गया तू फिर भी भेंज रहा वह संदेशा
टेर रहा है शतावर्तिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।24।।

अपने मन में ही प्रविष्ट नित कर ले उसका मन मधुकर
बस उसके मन का ही रसमय झर झर झरने दे निर्झर
जग प्रपंच को छीन तुम्हारा मन कर देगा बरसाना
टेर रहा है उरनिकुंजिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।25।।

सबसे सकता भाग स्वयं से भाग कहाँ सकता मधुकर
भाग भाग कर रीता ही रीता रह जायेगा निर्झर
कुछ होने कुछ पा जाने की आशा में बॅंध मर न विकल
टेर रहा स्वात्मानुशिलिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।26।।

यदि तोड़ना मूढ़ कुछ है तो तोड़ स्वमूर्च्छा ही मधुकर
जड़ताओं के तृण तरु दल से रुद्ध प्राण जीवन निर्झर
शुचि जागरण सुमन परिमल से सुरभित कर जीवन पंकिल
टेर रहा है पूर्णानन्दा मुरली तेरा मुरलीधर।।27।।

क्या ‘मैं’ के अतिरिक्त उसे तूँ अर्पित कर सकता मधुकर
शेष तुम्हारे पास छोड़ने को क्या बचा विषय निर्झर
‘मैं’ का केन्द्र बचा कर पंकिल कुछ देना भी क्या देना
टेर रहा अहिअहंमर्दिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।28।।

किसे मिटाने चला स्वयं का ‘मैं’ ही मार मलिन मधुकर
एकाकार तुम्हारा उसका फिर हो जायेगा निर्झर
शब्द शून्यता में सुन कैसी मधुर बज रही है वंशी
टेर रहा विक्षेपनिरस्ता मुरली तेरा मुरलीधर।।29।।

क्षुधा पिपासा व्याधि व्यथा विभुता विपन्नता में मधुकर
स्पर्श कर रहा वही परमप्रिय सच्चा विविध वर्ण निर्झर
वही वही संकल्पधनी है सतरंगी झलमल झलमल
टेर रहा है सर्वगोचरा मुरली तेरा मुरलीधर।।30।।