गँवई तलइया में बस्तर धोवै जात की बेरियाँ धोबी-धोबिनी आपन हियरे क मरम एक दुसरे से बतियाव तारन ! लुगाई गरीबी क रोवना रोव तिया तऽ मनसेधू ओकरा के गवें-गवें ढाढस दे तारन, समझावत-बुझावत बाड़न । इहै आपसी पति-पत्नी संवाद चल रहल बा –

धोबिन- रहि-रहि जियरा कचोटै ला हे पियऊ हम दाना-दाना के मोहाल ।
सऊँसै जहनवाँ में सजना बताय देता, हमरो से बड़ के कँगाल ?

धोबी- जिय दुख जनि माना धनि बउरहिया, बिरथा करैलू अफसोस ।
उहै मोर तिरिया निपट भिखमँगवा जेकरे हिय न संतोष ॥

धोबिन- के मोर पिया हो अकसवो से ऊपर भुईंया से के गरुआय ?
जियते जियत के मुअल माटिलौना तनि देता बलमू बताय ?

धोबी- बाबू रे बहुरिया अकसवो से ऊपर भुईंया से गरुइल माय ।
जियते जियत उन्हैं मूअल तू बूझिहा, कमवाँ से जे कदराय ॥

धोबिन- अमिरित-अमिरित सुनीला सजनवाँ, अमिरित कहवाँ भेंटाय ?
सरग नरक कहाँ कवन डगरिया तहवाँ सजन लेइ जाय ?

धोबी- तृषना कै नाश सरग मोरि सजनी अमिरित नेहिया सोहाय ।
घोर नरक इहै देहियाँ  रे तिरिया नारी नरक लेइ जाय ॥

धोबिन- के बड़ अन्हरा कवन बड़ गुँगवा के दुशमनवाँ क खान ?
मुअलो से बड़ का बतावा ए करेजऊ, का जग मरन समान ?

धोबी- कामी अन्ध, गुँगवा समय अनबोलता, मन दुशमनवाँ क खान ।
मुअलो से बड़ अपजस मोरि रनियाँ माँगन मरन समान ॥
धोबिन- दीरघ रोग कवन जग रजऊ कवन अगिनियाँ अपार ?
कवन गहनवाँ पहिरि झमकवलै हरियर होखै ला सिंगार ?
धोबी- दीरघ रोग ई दुनियैं बहुरिया चिन्ता अगिनियाँ अपार ।
शील गहनवाँ पहिरि अँग ’पंकिल’ जिनगी कै निखरै सिंगार ।