Harsingar

सखि आइल मधुऋतु आइल खुशिया छिटाइल हो
आली कंत न अइलैं तै कइसे बसंत मनाइब हो ॥

बैरिनि कुहुँकै कोइलिया कतेक समुझाइब हो
सखि बगिया निरखि रसवंती पगल होइ जाइब हो ॥

जाती की बेरियाँ कह्त गइलैं तोहै ना भुलाइब हो
रानी रखबै करेजवा की ओट पलकिया छिपाइब हो ॥

जनि रोआ अँखिया कै पुतरी तोहैं न बिसराइब हो
सखि चढ़तै फगुनवाँ कै मास बहुरि हम आइब हो ॥

हम नाहिं धनि निरमोहिया कि बिरहे जराइब हो
सखि सवने के मेघे तोहैं मघवा के जाड़ जुड़ाइब हो ॥

बहियाँ के पलना में झुर-झुर बेनियाँ डोलाइब हो
रानी तोरि निनिया सूतब जागब कल नहिं पाइब हो ॥

Last Update: April 11, 2024