सुधि उमड़ती रहे बदलियों की तरह ...
सुधि उमड़ती रहे बदलियों की तरह । तुम झलकते रहो बिजलियों की तरह ॥ प्रभु हृदय में मेरे तुमको होगी घुटन मैने गंदा किया सारा वातावरण ऐसे...
सुधि उमड़ती रहे बदलियों की तरह । तुम झलकते रहो बिजलियों की तरह ॥ प्रभु हृदय में मेरे तुमको होगी घुटन मैने गंदा किया सारा वातावरण ऐसे...
मुझे पाती लिखना सिखला दो हे प्रभु नयनों के पानी से । बतला दो कैसे शुरू करुंगा किसकी राम कहानी से ।। घोलूँगा कौन रंग की स्याही, किस टहनी क...
तिल तिल तरणी गली नहीं दिन केवट के बहुरे मधुकर वरदानों के भ्रम में ढोया शापों का पाहन निर्झर सेमर सुमन बीच अटके शुक ने खोयी ऋतु वासंती ट...
तरुण तिमिर देहाभिमान का तुमने रचा घना मधुकर सुख दुख की छीना झपटी में चैन हुआ सपना निर्झर धूल जमी युग से मन दर्पण पर हतभागी जाग मलिन टेर र...
वह विराम जानता न क्षण क्षण झाँक झाँक जाता मधुकर दुग्ध धवल फूटती अधर से मधुर हास्य राका निर्झर प्रीति हंसिनी उसकी तेरे मानस से चुगती मोती ...
उसके संग संग मिट जाते सभी उदासी स्वर मधुकर फूल हॅंसी के नभ से भू पर झरते हैं झर झर निर्झर उसके नयन जलद कर देते प्राण दुपहरी को पावस टेर र...
कोना कोना प्रियतम का जाना पहचाना है मधुकर इठलाता अटपटा विविध विधि आ दुलरा जाता निर्झर शब्द रूप रस स्पर्श गन्ध की मृदुला बाँहों में कस कस ...
चिर विछोह की अंतहीन तिमिरावृत रजनी में मधुकर, फिरा बहुत बावरे अभीं भी अंतर्मंथन कर निर्झर सुन रुनझुन जागृति का नूपुर खनकाता वह महापुरुष ट...
सुन अनजान प्राणतट का मोहाकुल आवाहन मधुकर रस सागर की तड़प भरी सब चाहें ममतायें निर्झर स्मरण कराता जन्म जन्म के लिये दिये अनगिन चुम्बन टेर र...
बिक जा बिन माँगे मन चाहा मोल चुका देता मधुकर जगत छोड़ देता वह आ जीवन नैया खेता निर्झर कठिन कुसमय शमित कर तेरा आ खटकाता दरवाजा टेर रहा है प...
अपने ही लय में तेरा लय मिला मिला गाता मधुकर अक्षत जागृति कवच पिन्हा कर गुरु अभियान चयन निर्झर तुमको निज अनन्त वैभव की सर्वस्वामिनी बना बना...
बार बार पथ घेर घेर वह टेर टेर तुमको मधुकर तेरे रंग महल का कोना कोना कर रसमय निर्झर सारा संयम शील हटाकर सटा वक्ष से वक्षस्थल टेर रहा है ह...
ज्यों तारक जल जल करते हैं धरती को शीतल मधुकर नीर स्वयं जल जल रखता है यथा सुरक्षित पय निर्झर वैसे ही मिट मिट प्रियतम को सत्व समर्पण कर पंकि...
मन सागर पर मनमोहन की उतरे मधु राका मधुकर प्राण अमा का सिहर उठे तम छू श्रीकृष्ण किरण निर्झर प्रियतम छवि की अमल विभा से हो तेरा तन मन बेसुध ...
उसका ही विस्तार विषद ढो रहा अनन्त गगन मधुकर मन्दाकिनी सलिल में प्रवहित उसकी ही शुचिता निर्झर उस प्रिय का अरविन्द चरण रस सकल ताप अभिशाप शमन...
खड़े दर्शनार्थी अपार दरबार सजा उसका मधुकर उपहारों की राशि चरण पर उसके रही बिछल निर्झर मुखरित गृह मुँह जोह रहे सब किन्तु न जाने क्यों आ...
देख शरद वासंती कितने हुए व्यतीत दिवस मधुकर काल श्रृंखलाबद्ध अस्त हो जाता भास्वर रवि निर्झर भग्न पतित कमलों की परिमल सुरभि उड़ा ले गया ...
भेंट सच्चिदानन्द ईश को मुक्त प्रभंजन में मधुकर सत निर्मल आकाश पवन चित नित तेजानन्द सतत निर्झर विविध वर्णमयि विश्व वस्तुयें प्रियतम का...
भूत मात्र में व्याप्त ईश का सूत्र न छोड़ कभीं मधुकर कर्म त्याग संभव न त्याग भी तो है एक कर्म निर्झर रज्जु सर्प ताड़न या उससे सभय पलायन ...
मुख मन अन्तर श्वाँस श्वाँस सब सच्चामय कर दे मधुकर सच्चा प्रेम सार जग में कुछ और न सार कहीं निर्झर जागृति स्वप्न शयन में तेरे बजे अखण्...
दुख का मुकुट पहन कर तेरे सम्मुख सुख आता मधुकर सुख का स्वागत करता तो दुख का भी स्वागत कर निर्झर सुख न रहा तो दुख भी तेरे साथ नहीं रहने...
स्वाद सुधा में है पदार्थ में स्वाद न पायेगा मधुकर सुख तो सब उसे सच्चे प्रिय में कहाँ खोजता रस निर्झर मन गृह में जम गयी धूल को पोंछ डा...
इन्द्रिय घट में भक्ति रसायन भर भर चखता रह मधुकर तन्मय चिन्तन सच्चा रस में देता तुम्हें बोर निर्झर कर त्रिकाल उस महाकाल के चरणामृत का ...
अहं रहित मह मह महकेंगे तेरे प्राण सुमन मधुकर स्निग्ध चाँदनी नहला देगी चूमेगा मारुत निर्झर तुम्हें अंक में ले हृदयेश्वर हलरायेगा मधुर ...
अपनी ही विरचित कारा में बंधा तड़पता तू मधुकर अपनी ही वासना लहर से पंकिल किया प्राण निर्झर उस प्रिय की कर पीड़ा हरणी चरण कमल की सुखद श...
वह कितनी सौभाग्यवती है अभिरामा वामा मधुकर कुलानन्दिनी कीर्तिसुता की अंश स्वरुपा वह निर्झर उसकी पद नख द्युति से कर ले अपना अंतर तिमिर हरण ...
भर जाते नख शिख पावस घन विकल बरसने को मधुकर जितनी प्यासी भू उतने ही प्यासे हैं नीरद निर्झर तूँ जितना व्याकुल उतना ही व्याकुल है तेरा प्राण...
पाँच-छः वर्ष पहले हमारे कस्बे में हुए एक कवि-सम्मेलन, जो आकाशवाणी वाराणसी के तत्कालीन निदेशक श्री शिवमंगल सिंह ’मानव” की पुस्तक के विमोचन प...
वह अनकहे स्नेह चितवन से उर में धँस जाता मधुकर इस जीवन के महाकाव्य की सबसे सरस पंक्ति निर्झर जन अंतर के रीते घट में भरता पल पल सुधा सलिल टेर ...
कोटि काम सुन्दर गुण मन्दिर कोटि कला नायक मधुकर अपने हृदयेश्वर के आगे थिरक थिरक नाचो निर्झर उर वृन्दावन चारी को मन दे उनके मन वाला बन टेर रहा...
बस अपने ही लिये रचा है तुमको प्रियतम ने मधुकर अन्य रचित उसकी चीजों पर क्यों मोहित होता निर्झर श्वांस श्वांस में बसा तुम्हारे रख अपना विश्वास...
नहीं भागते हुए जलद के संग भागता नभ मधुकर चलते तन के संग न चलता कभीं मनस्वी मन निर्झर किससे क्या लेना देना तेरा तो सच्चा से नाता टेर रहा अपनत...
अगणित जन्मों की ले दारुण कर्मश्रृंखलायें मधुकर जब जो भी दीखता उसी से व्याकुल पूछ रहा निर्झर उसका कौन पता बतलाये नाम रुप गति अकथ कथा टेर रहा ...
आह्लादित अंतर वसुंधरा दृग मोती ले ले मधुकर भावतंतु में गूंथ हृदय की मधुर सुमन माला निर्झर पिन्हा ग्रीव में आत्मसमर्पण कर होती कृतार्थ धरणी ट...
किससे मिलनातुर निशि वासर व्याकुल दौड़ रहा मधुकर सच्चे प्रभु के लिये न तड़पा बहा न नयनों से निर्झर व्यर्थ बहुत भटका उनके हित अब दिनर...
संश्लेशित जीवन मधुवन को खंड खंड मत कर मधुकर मधुप दृष्टि ही सृष्टि तुम्हारी वह मरुभूमि वही निर्झर तुम्हें निहार रहा स्नेहिल दृग सर्व सर्वगत न...
जाग न जाने कब वह आकर खटका देगा पट मधुकर सतत सजगता से ही निर्जल होता अहमिति का निर्झर मूढ़ विस्मरण में निद्रा में मिलन यामिनी दे न बिता टेर रह...
सोच अरे बावरे कर्म से ही तो बना जगत मधुकर चल उसके संग रच एकाकी एक प्रीति पंकिल निर्झर प्राण कदंब छाँव में कोमल भाव सुमन की सेज बिछा टेर रहा ...
प्राणेश्वर के संग संग ही कुंज कुंज वन वन मधुकर डोल डोल हरि रंग घोल अनमोल बना ले मन निर्झर शेश सभी मूर्तियाँ त्याग सच्चे प्रियतम के पकड़ चरण ट...
श्वाँस श्वाँस में रमा वही सब हलन चलन तेरी मधुकर यश अपयश उत्थान पतन सब उस सच्चे रस का निर्झर वही प्रेरणा क्षमता ममता ...
सो कर नहीं बिता वासर दिन रात जागता रह मधुकर जो सोता वह खो देता है मरुथल में जीवन निर्झर सर्वसमर्पित कर इस क्षण ही साहस कर मिट जा मिट जा ...
मंदस्मित करुणा रसवर्षी वह अद्भुत बादल मधुकर मृदु करतल सहला सहला सिर हरता प्राण व्यथा निर्झर मनोहारिणी चितवन से सर्वस्व तुम्हारा हर मनहर ट...
विरम विषम संसृति सुषमा में मलिन न कर मानस मधुकर, वहां स्रवित संतत रसगर्भी सच्चा श्री शोभा निर्झर ! सुन्दरता सरसता स्रोत बस कल्लोलि...
नृप बनने के बाद जनों ने पूछा यही हसन से बात । पास न सेना विभव बहुत, कैसे सुलतान हुए तुम तात । बोला अरि पर भी उदारता सच्चा स्नेह ...
'बावरिया बरसाने वाली' के अभी सैकड़ों छंद यहाँ नहीं आए हैं। इस ब्लॉग की प्रविष्टियों को पढ़कर सम्मानित गजलकार ' द्विजेन्द्र द्...
कहते थे हे प्रिय! “स्खलित-अम्बरा मुग्ध-यौवना की जय हो । अँगूरी चिबुक प्रशस्त भाल दृग अरूणिम अधर हास्यमय हो । वह गीत व्यर्थ जिसमें बहती अप्सर...
सुधि करो कहा था,"कभीं निभृत में सजनी! तेरा घूँघट-पट। निज सिर पर सरका लूँ फ़िर चूमूँ नत-दृग अधर-सुधा लटपट। छेड़ना करुण पद कुपित कोकिला रात...
कहते थे प्राण "अरी, तन्वी! मैं कृष कटि पर हो रही विकल । कह रही करधनी ठुनक-ठुनक रो रहे समर्थन में पायल । भय है उरोज-परिवहन पवन ...