Author: Prem Narayan Pankil

  • मुरली तेरा मुरलीधर – 42


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    वह इच्छुक है सुनने को तेरे गीतों का स्वर मधुकर
    nआ आ मुख निहार जाता है नीर नयन में भर निर्झर
    nसरस तरंगित उर कर अपना बाँट रहा आनन्द विभव
    nटेर रहा सुख गीत गुंजिता मुरली तेरा मुरलीधर ॥२२६॥
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    nसुन वह कैसे गाता तूँ विस्मय विमुग्ध सुन-सुन मधुकर
    nइस नभ से उस नभ तक करता आलोकित वह स्वर निर्झर
    nउसके स्वर में स्वर संयुत कर विह्वल गायन हेतु मचल
    nटेर रहा रस भाव विमुग्धा मुरली तेरा मुरलीधर ॥२२७॥
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    nधूल बीच निज अन्तर के सारे दुर्भाव मिला मधुकर
    nनिज उर में प्राणेश प्रीति का विमल प्रसून खिला निर्झर
    nक्या न पता तेरे अंगों पर प्रियतम का जीवित स्पंदन
    nटेर रहा है प्राणस्पर्शिनी  मुरली तेरा मुरलीधर ॥२२८॥
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    nनिज चिन्तन से सब असत्य का कर दे उन्मूलन मधुकर
    nवह तो सत्य वही है जिससे ज्योतित उर चिन्तन निर्झर
    nपाणि अपावन कर सकते कैसे पावन पद प्रच्छालन
    nटेर रहा नख-शिखा पावनी मुरली तेरा मुरलीधर ॥२२९॥
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    nक्या अछोर कर्म सागर में श्रम कर कर हारा मधुकर
    nस्वेदसिक्त श्लथ सुखी हो सका नहीं बिचारा मन निर्झर
    nहो समीप स्थित शांति सदन प्रिय निर्निमेष मुख-चन्द्र निरख
    nटेर रहा दर्शनानुरक्ता मुरली तेरा मुरलीधर ॥२३०॥
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    nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
    n# आया है प्रिय ऋतुराज …  (सच्चा शरणम )

  • मुरली तेरा मुरलीधर 41


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    तुम गुरु स्वयं शिष्य मन तेरा प्रथम सुधारो मन मधुकर
    nजग सुधार कामना मत्त मत जग में करो गमन निर्झर ।
    nकरता विरत कृष्ण-चिन्तन से जगत राग द्वेषादि ग्रसित
    nटेर रहा है मनसंयमिनी मुरली तेरा मुरलीधर ॥ २२१॥
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    nस्वयं कृपालु बनो मन पर दो उसे प्रबोधन स्वर मधुकर
    nप्यारे अब बनना न किसी का प्रियतम प्रिया तनय निर्झर।
    nअपनी पूरी शक्ति लगा दो बना उसे हरि चरण भ्रमर
    nटेर रहा है मनस्तोषिणी मुरली तेरा मुरलीधर ॥ २२२॥
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    nसमय न गंवा व्यर्थ  चिन्तन में अन्तस्तल में जग मधुकर
    nमुट्ठी में बाँधता लहर की झाग अज्ञ फेनिल निर्झर ।
    nसागर की गहराई में हीरे हैं रहा टटोल कहाँ
    nटेर रहा अस्तित्वबोधिनी मुरली तेरा मुरलीधर ॥ २२३॥
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    nतुम्हें अनंत कर दिया उसने ऐसा सुखदाता मधुकर
    nपुनः पुनः कर रिक्त पुनः नव जीवन भर जाता निर्झर ।
    nतेरी लघु वंशी से घाटी-घाटी गाता गीत नवल
    nटेर रहा अनवरत सहचरी मुरली तेरा मुरलीधर ॥ २२४॥
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    nआती भेंट उतर अनंत की तेरे लघुकर में मधुकर
    nअमृत स्पर्श उसके हाथों का रचता हर्श सिन्धु निर्झर ।
    nयुग बीतते उड़ेल रहा भरने को फिर भी शेष सदन
    nटेर रहा अक्षयसुखकोषा मुरली तेरा मुरलीधर ॥ २२५॥
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    nचित्र साभार : http://radhemohan.blogspot.com
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    nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ-
    n# करुणावतार बुद्ध-9 ….(सच्चा शरणम)

  • सुधि उमड़ती रहे बदलियों की तरह …

    सुधि उमड़ती रहे बदलियों की तरह    ।
    nतुम झलकते रहो बिजलियों की तरह ॥
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    nप्रभु हृदय में मेरे तुमको होगी घुटन
    nमैने गंदा किया सारा वातावरण 
    nऐसे हिय में बिरह की सलाई लगा
    nप्राण सुलगें अगरबत्तियों की तरह     ||1||
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    nदृष्टि बस फेर दो कष्ट कट जायेगा
    nकुछ तेरा सच्चे बाबा न घट जायेगा
    nउर की क्यारी में भगवन खिलो बन सुमन
    nमन मचलने लगे तितलियों की तरह ||2||
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    nमैं हूँ दुनिया का सबसे बुरा आदमी
    nबोझ ढ़ोने में यदि चाहते हो कमी
    nमेरा अपराध-तरु झोर दो झर पड़ें
    nपाप सूखी हुई पत्तियों की तरह        ||3||
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    nतेरी सुधि से बिलग मत रहे एक क्षण
    nमेरी हर श्वांस, हर रोम, हर रक्त-कण
    nअपनी चुटकी का बल आप देते रहें
    nमै थिरकता रहूँ तकलियों की तरह  ||4||
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    nसोचते कौन तुम मेरी नेकी – बदी
    nताल ‘पंकिल’ हूँ मैं तुम हो गंगा नदी
    nप्रेम चारा चुँगाते चलो चाव से
    nमैं निगलता चलूँ मछलियों की तरह  ||5||
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    photo source : wikimedia
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    nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ – 
    n# शायद आज मैं मिलूँगा तुमसे ...  (सच्चा शरणम )
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  • मुझे पाती लिखना सिखला दो…

    मुझे पाती लिखना सिखला दो हे प्रभु नयनों के पानी से ।
    nबतला दो कैसे शुरू करुंगा किसकी राम कहानी से ।।
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    nघोलूँगा कौन रंग की स्याही, किस टहनी की बने कलम
    nहै कौन कला जिससे पिघला, करते हो लीलामय प्रियतम,
    nहे प्रभु तुम प्रकट हुआ करते हो, किस मनभावनि वाणी से-
    nमुझे पाती लिखना …………………………………….।।1।।
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    nकैसा होगा पावन पन्ना, कैसे होंगे अनुपम अक्षर
    nकोमल अंगुलि में थाम जिसे, तुम पढ़ा करोगे पहर-पहर,
    nकैसे खुश होंगे रूठ गये, क्या प्रभु मेरी नादानी से –
    nमुझे पाती लिखना ……………………………………..।।2।।
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    nअपनी प्रिय विषयवस्तु बतला दो, सच्चे प्रभु त्रिभुवन-साँईं
    nक्या कहाँ रखूँगा, कितनी होगी  प्रेम-पत्र की लम्बाई,
    nकब प्रभु अंतरतम जुड़ जायेगा सच्चे अवढर दानी से –
    nमुझे पाती लिखना …………………………………….।।3।।
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    nदृग-गोचर होंगे क्या न देव, कब तक लुक-छिप कर खेलोगे
    nइस मंद भाग्य को क्या न कभीं करूणेश ! गोद में ले लोगे
    n‘पंकिल’ मानस को मथा करोगे, अपनी प्रेम-मथानी से –
    nमुझे पाती लिखना …………………………………….।।4।।
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    nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ —
    n# करुणावतार बुद्ध – 7…..  (सच्चा शरणम)

  • मुरली तेरा मुरलीधर 40

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    तिल तिल तरणी गली नहीं दिन केवट के बहुरे मधुकर
    nवरदानों के भ्रम में ढोया शापों का पाहन निर्झर
    nसेमर सुमन बीच अटके शुक ने खोयी ऋतु वासंती
    nटेर रहा मानसप्रबोधिनी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।216।।
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    nदेह गेह कोई न तुम्हारा नश्वर संयोगी मधुकर
    nतुम तो प्रिय की गलियों में फिरने वाले योगी निर्झर
    nबहने दे उसके प्रवाह में सत्ता संज्ञाहीन परम
    nटेर रहा है आशुतोषिणी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।217।।
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    nबिना अश्रु सच्चे प्रियतम तक पहुँचा ही है क्या मधुकर
    nसच्चा रस से पावन भावन और न कोई रस निर्झर
    nठिठक न तू तो गोपीवल्लभ की गोपिका विकल बौरी
    nटेर रहा है अमर्यादिता  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।218।।
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    nउसे याद आयेगी तेरी हल्की भी हिचकी मधुकर
    nव्यथा कथा अनकही तुम्हारी भी सब उसे ज्ञात निर्झर
    nमत घबरा वह माँ है लेगी करुण गोद में बिठा तुम्हें
    nटेर रहा है अन्तरंगिणी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।219।।
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    nसाधन साध्य नहीं वह सच्चा कृपा साध्य ही है मधुकर
    nदेख तुम्हारी दीन दशा विह्वल हो उठता है निर्झर
    nवह मायास्वामी तू माया दास बॅंधा छटपटा रहा
    nटेर रहा है मायामुक्ता मुरली   तेरा    मुरलीधर।।220।।
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  • मुरली तेरा मुरलीधर 39

    तरुण तिमिर देहाभिमान का तुमने रचा घना मधुकर
    nसुख दुख की छीना झपटी में चैन हुआ सपना निर्झर
    nधूल जमी युग से मन दर्पण पर हतभागी जाग मलिन
    nटेर रहा तनतुष्टिनिरस्ता मुरली   तेरा    मुरलीधर।।211।।
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    nपलकें खुलीं रहीं दिन दिन भर पर तू जगा कहाँ मधुकर
    nदिवास्वप्न ताने बाने बुनने में व्यस्त रहा निर्झर
    nकिया याचना मंदिर मंदिर बना भिखारी का जीवन
    nटेर रहा है मोहमर्दिनी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।212।।
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    nचैत्र बौर बैशाख भोर सी जेठ छाँह जैसी मधुकर
    nघटा अषाढ़ी श्रावण रिमझिम भाद्र दामिनी सी निर्झर
    nआश्विन की चन्द्रिका कार्तिकी पवन अगहनी सरिता सी
    nटेर रहा रोमांचकारिणी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।213।।
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    nपूष दुपहरी माघ अनल फाल्गुनी फाग जैसी मधुकर
    nउसकी सेज स्पर्श आकृति स्मिति करुणामयी दृष्टि निर्झर
    nनिज खोना ही उसको पाना श्वाँस श्वाँस में रचा बसा
    nटेर रहा आनन्दनिर्झरी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।214।।
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    nदो अतियों के बीच झूल तू सुखी न रह सकता मधुकर
    nबहुत कसी अति श्लथ वीणा से राग न बह सकता निर्झर
    nचलनी में जल भर भर अपना गला सींच पायेगा क्या
    nटेर रहा है दृगोन्मीलनी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।215।।
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    nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
    n# स्वर अपरिचित….  (सच्चा शरणम )

  • मुरली तेरा मुरलीधर 38

    वह विराम जानता न क्षण क्षण झाँक झाँक जाता मधुकर
    nदुग्ध धवल फूटती अधर से मधुर हास्य राका निर्झर
    nप्रीति हंसिनी उसकी तेरे मानस से चुगती मोती
    nटेर रहा है अविरामछंदिनी  मुरली  तेरा  मुरलीधर।।206।।
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    nअंगारों पर भी प्रिय से अभिसार रचाता चल मधुकर
    nअज अनवद्य अकामी को लेना बाँहों में भर निर्झर
    nजन्म जन्म के घाव भरेंगे फूल बनेंगे अंगारे
    nटेर रहा है जयजयवंती मुरली   तेरा    मुरलीधर।।207।।
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    nवह अद्भुत रस की हिलोरमय सिंधु कुलानन्दी मधुकर
    nशिशु अबोध मुकुलित किशोर वह युवा जरठ काया निर्झर
    nमुक्ता मण्डित निलय वही वह तृण कुटीर पल्लव पंकिल
    nटेर रहा है स्वबसचारिणी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।208।।
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    nप्रिय चिंतन प्रिय रस मज्जन ही रुचिर सुरंग सरस मधुकर
    nउससे होकर अपर जगत में कर सकता प्रयाण निर्झर
    nएक अनिर्वच दिव्य ज्योति में तुमको नख शिख नहला कर
    nटेर रहा है आलोकपंखिनी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।209।।
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    nमन चाहा अंचल कब किसको जग में मिल पाता मधुकर
    nबुझती तृषा न अधर आस में सूखा रह जाता निर्झर
    nलेता कूल छीन लहरों की सब उर्मिल अभिलाषायें
    nटेर रहा है तृप्तिपयोदा मुरली   तेरा    मुरलीधर।।210।।
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    nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
    n# करुणावतार बुद्ध-५   (सच्चा शरणम )

  • मुरली तेरा मुरलीधर 37

    उसके संग संग मिट जाते सभी उदासी स्वर मधुकर
    nफूल हॅंसी के नभ से भू पर झरते हैं झर झर निर्झर
    nउसके नयन जलद कर देते प्राण दुपहरी को पावस
    nटेर रहा है हृदयाह्लादिनि मुरली   तेरा    मुरलीधर।।201।।
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    nकौन तुला जिस पर तौलेगा उसका अपनापन मधुकर
    nजैसा वह गा रहा कौन वैसा गाने वाला निर्झर
    nहर स्वर उसकी ही पद पैजनि हर द्युति उसकी ही चपला
    nटेर रहा है सर्वास्वादा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।202।।
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    nपग पग पर चल रहा संग तेरी अंगुली थामे मधुकर
    nक्षण क्षण पूछ रहा मुस्काता तेरा क्षेम कुशल निर्झर
    nस्वयं भॅंवर में कूद खे रहा तेरी जीवन जीर्ण तरी
    nटेर रहा है सदासंगदा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।203।।
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    nरे बौरे वासना वाटिका में न ठिठक जाना मधुकर
    nरीझ किसी छलना छाया पर मन मत ललचाना निर्झर
    nबुला रही है प्राणेश्वर की शीतल सुखद अंक छाया
    nटेर रहा है प्राणशरण्या मुरली   तेरा    मुरलीधर।।204।।
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    nउसकी पीर न सोने देगी उमड़ेंगे लोचन मधुकर
    nअकुलायेंगे प्राण अकेले में बेसुध हो हो निर्झर
    nअरुण उषा की प्रथम पुलक सी अंग अंग कर रोमांचित
    nटेर रहा उच्छ्वसितअंतरा मुरली   तेरा    मुरलीधर।।205।।
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    nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
    n# प्राणों के रस से सींचा पात्र : बाउ (गिरिजेश भईया की लंठ-महाचर्चा)