मुरली तेरा मुरलीधर 9

किससे मिलनातुर निशि वासर व्याकुल दौड़ रहा मधुकर
सच्चे प्रभु के लिये न तड़पा बहा न नयनों से निर्झर
व्यर्थ बहुत भटका उनके हित अब दिनरात बिलख पगले
टेर रहा है अश्रुमालिनी   मुरली   तेरा    मुरलीधर।।56।।

सूर्यकान्तमणि सुभग सजाकर अम्बर थाली में मधुकर
उषा सुन्दरी अरुण आरती करती उसकी नित निर्झर
सिन्दूरी नभ से मुस्काता वह सच्चा सुषमाशाली
टेर रहा है किरणमालिनि मुरली   तेरा  मुरलीधर।।57।।

उडुगण मेचक मोर पंख का गगन व्यजन ले कर मधुकर
झलता पवन विभोरा रजनी पद पखारती रस निर्झर
तारकगण की दीप मालिका सजा मनाती दीवाली
टेर रहा ब्रह्माण्डवंदिता मुरली   तेरा    मुरलीधर।।58।।

उडुमोदक विधु दुग्ध कटोरा व्योम पात्र में भर मधुकर
सच्चे प्रिय को भोग लगाती मुदित यामिनी नित निर्झर
किरण तन्तु में गूंथ पिन्हाता हिमकर तारकमणिमाला
टेर रहा संसृतिमहोत्सवा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।59।।

सरित नीर सीकर शीतल ले सरसिज सुमन सुरभि मधुकर
करता व्यजन विविध विधि मंथर मलय प्रभंजन मधु निर्झर
सलिल सुधाकण अर्घ्य चढ़ाता उमग उमग कर रत्नाकर
टेर रहा आनन्दउर्मिला   मुरली   तेरा    मुरलीधर।।60।।

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *