आह्लादित अंतर वसुंधरा दृग मोती ले ले मधुकर
भावतंतु में गूंथ हृदय की मधुर सुमन माला निर्झर
पिन्हा ग्रीव में आत्मसमर्पण कर होती कृतार्थ धरणी
टेर रहा सर्वस्वस्वीकृता मुरली तेरा मुरलीधर।।61।।

अगरु धूम से उड़े जा रहे अम्बर में जलधर मधुकर
सुर धनु की पहना देते उसको चपला माला निर्झर
नीर बरस कर अघ्र्य आरती करती घन विद्युत माला
टेर रहा मधुरामनुहारा मुरली तेरा मुरलीधर।।62।।

तुच्छ न कह ठुकराना वाला वह तेरा अर्पण मधुकर
लघु पद सरिता को भी उर में भरता विशद सिंधु निर्झर
लतिकाओं की वेदी में खेला करते लघु ललित सुमन
टेर रहा प्रतिकणक्शणपर्वा मुरली तेरा मुरलीधर।।63।।

जड़ पारसमणि छू लोहा भी कुंदन हो जाता मधुकर
प्राणनाथ सच्चा प्रियतम तो परम चेतना का निर्झर
स्नेहमयी ममता से तुमको सटा हृदय से हृदयेश्वर
टेर रहा परिवर्तनप्राणा मुरली तेरा मुरलीधर।।64।।

भले चपल अलि कुटिल कलुशमय पर उसका ही तू मधुकर
सभी निर्धनों का धन वह सब असहायों का बल निर्झर
लांछित होकर भी न हिरण को कभीं त्याग देता हिमकर
टेर रहा स्वजनाश्रयशीला मुरली तेरा मुरलीधर।।65।।

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