संत बहुत हैं पर सच्चा अद्भुत फकीर है
गहन तिमिर में ज्योति किरण की वह लकीर है।
राका शशि वह मरु प्रदेश की पयस्विनी है
अति सुहावनी उसके गीतों की अवनी है॥१॥

सच्चा अद्वितीय अद्भुत है, उसको जी लो
बौद्धिक व्याख्या में न फँसो, उसको बस पी लो।
मदिरा उसकी चुस्की ले ले पियो न ऊबो
उस फकीर की मादकता मस्ती में डूबो॥२॥

तुम सच्चे की भाषा में ही उलझ न जाओ
श्रद्धा से उसके भावाम्बुधि बीच नहाओ।
राख नहीं वह, वह तो जलता अंगारा है
उसको तो अनुभूति गगन का रवि प्यारा है॥३॥

तुम उसकी पी आग स्वयं बन सकते ज्वाला।
एक घूँट भी जो पी ले होगा मतवाला।
यदि सच्चा के शब्दों से ही टकराओगे।
तो ऊपर का कूड़ा-कचरा ही पाओगे॥४॥

निज में उसके भावों को ही सज जाने दो।
झर झर झरें प्रसून बाँसुरी बज जाने दो।
उगें इन्द्रधनु जलें प्रदीप उदित हो दिनकर।
अन्तर में आनन्द बोध के फूटें निर्झर॥५॥

वह है एक निमंत्रण आवाहन पुकार है।
वह अभिनव नर्तन झंकृत उर वीण तार है।
व्याख्यारत पुस्तक पन्नों में ही मत मचलो।
वहाँ न कुछ मिल सकता, आगे बढ़ो, बढ़ चलो॥६॥

प्रभु विछोह की,परम प्रीति की, आत्मज्ञान की।
तुममें भी हो पीर कसक हो चुभे बाण की।
भोर बुलाये, गंधानिल मथ दे शरीर को।
पलकें ढुलका दें कपोल पर नयन नीर को॥७॥

लहरे स्वर पर स्वर गूँजे गुंजन पर गुंजन।
महामहोत्सव के मद में डूबे नख-शिख मन।
कुछ मधुमय मिल जाये तुम्हारे प्राण-कीर को
तभीं समझना कुछ समझा सच्चा फकीर को॥८॥