मुरली तेरा मुरलीधर 38

वह विराम जानता न क्षण क्षण झाँक झाँक जाता मधुकर
nदुग्ध धवल फूटती अधर से मधुर हास्य राका निर्झर
nप्रीति हंसिनी उसकी तेरे मानस से चुगती मोती
nटेर रहा है अविरामछंदिनी  मुरली  तेरा  मुरलीधर।।206।।
n
nअंगारों पर भी प्रिय से अभिसार रचाता चल मधुकर
nअज अनवद्य अकामी को लेना बाँहों में भर निर्झर
nजन्म जन्म के घाव भरेंगे फूल बनेंगे अंगारे
nटेर रहा है जयजयवंती मुरली   तेरा    मुरलीधर।।207।।
n
nवह अद्भुत रस की हिलोरमय सिंधु कुलानन्दी मधुकर
nशिशु अबोध मुकुलित किशोर वह युवा जरठ काया निर्झर
nमुक्ता मण्डित निलय वही वह तृण कुटीर पल्लव पंकिल
nटेर रहा है स्वबसचारिणी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।208।।
n
nप्रिय चिंतन प्रिय रस मज्जन ही रुचिर सुरंग सरस मधुकर
nउससे होकर अपर जगत में कर सकता प्रयाण निर्झर
nएक अनिर्वच दिव्य ज्योति में तुमको नख शिख नहला कर
nटेर रहा है आलोकपंखिनी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।209।।
n
nमन चाहा अंचल कब किसको जग में मिल पाता मधुकर
nबुझती तृषा न अधर आस में सूखा रह जाता निर्झर
nलेता कूल छीन लहरों की सब उर्मिल अभिलाषायें
nटेर रहा है तृप्तिपयोदा मुरली   तेरा    मुरलीधर।।210।।
n————————————————————-
nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
n# करुणावतार बुद्ध-५   (सच्चा शरणम )

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *