मुरली तेरा मुरलीधर 21

स्वाद सुधा में है पदार्थ में स्वाद न पायेगा मधुकर
सुख तो सब उसे सच्चे प्रिय में कहाँ खोजता रस निर्झर
मन गृह में जम गयी धूल को पोंछ डाल आनन्द पथी
टेर रहा संसारनाशिनी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।116।।

यदि संस्कार वासनाओं से पंकिल बना रहा मधुकर
लाख रचो केसर की क्यारी कस्तूरी का रस निर्झर
अरे प्याज तो प्याज रहेगी वहाँ सुरभि खोजना वृथा
टेर रहा है सुरभिनिमग्ना मुरली   तेरा    मुरलीधर।।117।।

विश्व प्रकट परमात्मा ही है तुम शरीर यह भ्रम मधुकर
तुम ईश्वर हो ईश्वर के हो बोध न कर विस्मृत निर्झर
ईश बना मानव तो फिर से मानव ईश बनेगा ही
टेर रहा है निजस्वरूपिणी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।118।।

तुम अपने को देह मान ही जग से अलग थलग मधुकर
जीव  मान कर ही अनन्त पावक का एक स्फुलिंग निर्झर
आत्म स्वरूप समझ लेते ही फिर विराट हो विश्व तुम्हीं
टेर रहा ब्रह्माण्डगोचरा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।119।।

कृष्ण प्रीति सरि में न नहाया खाली हाथ गया मधुकर
रिक्त हस्त ही अपर जन्म में फिर रह जायेगा निर्झर
कण कण में झंकृत है उसकी स्वर लहरी उल्लासमयी
टेर रहा है योनिरुत्तमा मुरली   तेरा    मुरलीधर।।120।।

_________________________________________

टिप्पणी करने के लिये प्रविष्टि के शीर्षक पर क्लिक करें…

_________________________________________

अन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ

# अति प्रिय तुम हमसे अनन्य हो गये..  (सच्चा शरणम )

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *