O Majhi Re
O Majhi Re: Dipankar Das      
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माझी रे! कौने जतन जैहौं पार।
जीरन नइया अबुध खेवइया
टूट गए पतवार-
माझी रे! कौने जतन जैहौं पार।

माझी रे! ढार न अँसुवन धार।
दरियादिल है ऊपर वाला
साहेब खेवनहार! माझी रे!
रामजी करीहैं बेड़ापार।
माझी रे! कौने जतन जैहौं पार।

बीच भँवर खाती हिंचकोले
झाँझरी नइया डगमग डोले
उलटी बहत बयार, माझी रे!
नइया फँसी मझधार।
माझी रे! कौने जतन जैहौं पार।

बन जा उसके पथ का राही
उहवाँ नाहीं, नाहीं नाहीं
जिसने अजामिल ऋषितिय तारी
तोहरो सुनिहैं पुकार, माझी रे!
पंकिल ना डुबिहैं बीचे धार।
माझी रे! कौने जतन जैहौं पार।