Author: Prem Narayan Pankil

  • मुरली तेरा मुरलीधर 13

    बस अपने ही लिये रचा है तुमको प्रियतम ने मधुकर
    अन्य रचित उसकी चीजों पर क्यों मोहित होता निर्झर
    श्वांस श्वांस में बसा तुम्हारे रख अपना विश्वास अचल
    टेर रहा है संततलब्धा मुरली तेरा मुरलीधर।।76।।

    जीने की वासना न रख मत मरने की वांछा मधुकर
    मात्र प्रतीक्षा में बैठा रह कब कैसी आज्ञा निर्झर
    सोच जगत को बना जगत का उसको सोच उसी का बन
    टेर रहा है चिंतनाश्रया मुरली तेरा मुरलीधर।।77।।

    वैसे ही रह जग में जैसे रसना रहती है मधुकर
    लाख भले घृत चख ले होती किन्तु न स्निग्ध कभीं निर्झर
    इनसे उनसे तोड़ उसी से पंकिल नाता जोड़ सखे
    टेर रहा भक्तानुकंपिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।78।।

    कुटिल रीछनी यथा गुदगुदा करती प्राण हरण मधुकर
    ललचा ललचा तथा मारती विषय वासनायें निर्झर
    जग के कच्चे कूप कूल पर सम्हल सम्हल के बढ़ा चरण
    टेर रहा है भ्रमोत्पाटिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।79।।

    मत अशान्त हो विलख न सोया है सच्चा प्रियतम मधुकर
    दुख की श्यामल जलद घटा से ही झरता सुख का निर्झर
    सुख उसका मुख चन्द्र कष्ट है उसकी कुंचित कच माला
    टेर रहा है सर्वकामदा मुरली तेरा मुरलीधर।।80।।

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    अन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ :- Link# मैं समर्पित साधना की राह लूँगा ……….(सच्चा शरणम )
    # तुलसी जयंती पर तुलसीदास का एक भजन……… (नया प्रयत्न )

  • मुरली तेरा मुरलीधर 12

    नहीं भागते हुए जलद के संग भागता नभ मधुकर
    चलते तन के संग न चलता कभीं मनस्वी मन निर्झर
    किससे क्या लेना देना तेरा तो सच्चा से नाता
    टेर रहा अपनत्ववर्षिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।71।।

    प्रेम भरे लोचन प्रियतम के हित ही खोल रसिक मधुकर
    और कहाँ रस रसाभास का बहता व्यभिचारी निर्झर
    विश्व वाटिका के माली को दे दे अपने प्राण सुमन
    टेर रहा प्रबलपिपासा मुरली तेरा मुरलीधर।।72।।

    विरह ताप से प्राणनाथ के तू न कभीं तड़पा मधुकर
    क्षुधित तृषित ज्यों वारि असन हित फिरता विकल व्यथित निर्झर
    रे कर दे पाताल गगन को एक कृष्ण प्रेमी पगले
    टेर रहा पुरुषार्थरुपिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।73।।

    तेरा चिंतन ही है तेरे प्राणों का दर्पण मधुकर
    उससे कहाँ छिपाना जिसने देखा सारा तन निर्झर
    अंतर्मुख हो बैठ पास में उसके मृदुल पलोट चरण
    टेर रहा है हृदयवल्लभा मुरली तेरा मुरलीधर।।74।।

    मनतरंग निग्रह में बहता है आनन्द परम मधुकर
    यह अनुभव होते ही क्षण में होता मन नीरस निर्झर
    प्रभु चिन्तन ही विधि जग चिन्तन है निषेधमय पथ पंकिल
    टेर रहा है विधिविधायिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।75।।

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    अन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
    # मैं चिट्ठाकार हूँ, पर……. (सच्चा शरणम )
    # तुलसी जयंती पर तुलसीदास का एक भजन (नया प्रयत्न )

  • मुरली तेरा मुरलीधर 11

    अगणित जन्मों की ले दारुण कर्मश्रृंखलायें मधुकर
    जब जो भी दीखता उसी से व्याकुल पूछ रहा निर्झर
    उसका कौन पता बतलाये नाम रुप गति अकथ कथा
    टेर रहा करुणासाध्या मुरली तेरा मुरलीधर।।66।।

    क्या कण कण वासी अनन्त का अन्वेषण संभव मधुकर
    स्वयं भावना समझ करुण वह पास उतर आता निर्झर
    चन्द्र दिवाकर स्वयं कृपाकर करते ज्योर्तिमय त्रिभुवन
    टेर रहा स्वजनांकमालिका मुरली तेरा मुरलीधर।।67।।

    तृशित चंचु चातक तुम सच्चा स्वाति मेघ माला मधुकर
    तुम पतझर पूरित कानन वह प्रियतम वासंती निर्झर
    तुम चकोर वह चंद्र मयूरी तुम वह श्रावण जलज सजल
    टेर रहा अंतराकर्षिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।68।।

    रोता गगन बिलखती धरती दहक रहा पावक मधुकर
    उबल रहा पाथोधि प्रकम्पित मारुत का अंतर निर्झर
    उद्वेलित वन खग पुकारते वह सच्चा प्राणेश कहाँ
    टेर रहा है पीरप्रणयिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।69।।

    प्रभु तुमको जानते अपर फिर जाने मत जाने मधुकर
    तेरा सच्चा से परिचय फिर मिले न मिले अपर निर्झर
    उस हृदयस्थ परम प्रियतम की चरण शरण ही कल्याणी
    टेर रहा करुणापयोधरा मुरली तेरा मुरलीधर।।70।।

  • मुरली तेरा मुरलीधर 10

    आह्लादित अंतर वसुंधरा दृग मोती ले ले मधुकर
    भावतंतु में गूंथ हृदय की मधुर सुमन माला निर्झर
    पिन्हा ग्रीव में आत्मसमर्पण कर होती कृतार्थ धरणी
    टेर रहा सर्वस्वस्वीकृता मुरली तेरा मुरलीधर।।61।।

    अगरु धूम से उड़े जा रहे अम्बर में जलधर मधुकर
    सुर धनु की पहना देते उसको चपला माला निर्झर
    नीर बरस कर अघ्र्य आरती करती घन विद्युत माला
    टेर रहा मधुरामनुहारा मुरली तेरा मुरलीधर।।62।।

    तुच्छ न कह ठुकराना वाला वह तेरा अर्पण मधुकर
    लघु पद सरिता को भी उर में भरता विशद सिंधु निर्झर
    लतिकाओं की वेदी में खेला करते लघु ललित सुमन
    टेर रहा प्रतिकणक्शणपर्वा मुरली तेरा मुरलीधर।।63।।

    जड़ पारसमणि छू लोहा भी कुंदन हो जाता मधुकर
    प्राणनाथ सच्चा प्रियतम तो परम चेतना का निर्झर
    स्नेहमयी ममता से तुमको सटा हृदय से हृदयेश्वर
    टेर रहा परिवर्तनप्राणा मुरली तेरा मुरलीधर।।64।।

    भले चपल अलि कुटिल कलुशमय पर उसका ही तू मधुकर
    सभी निर्धनों का धन वह सब असहायों का बल निर्झर
    लांछित होकर भी न हिरण को कभीं त्याग देता हिमकर
    टेर रहा स्वजनाश्रयशीला मुरली तेरा मुरलीधर।।65।।

  • मुरली तेरा मुरलीधर 9

    किससे मिलनातुर निशि वासर व्याकुल दौड़ रहा मधुकर
    सच्चे प्रभु के लिये न तड़पा बहा न नयनों से निर्झर
    व्यर्थ बहुत भटका उनके हित अब दिनरात बिलख पगले
    टेर रहा है अश्रुमालिनी   मुरली   तेरा    मुरलीधर।।56।।

    सूर्यकान्तमणि सुभग सजाकर अम्बर थाली में मधुकर
    उषा सुन्दरी अरुण आरती करती उसकी नित निर्झर
    सिन्दूरी नभ से मुस्काता वह सच्चा सुषमाशाली
    टेर रहा है किरणमालिनि मुरली   तेरा  मुरलीधर।।57।।

    उडुगण मेचक मोर पंख का गगन व्यजन ले कर मधुकर
    झलता पवन विभोरा रजनी पद पखारती रस निर्झर
    तारकगण की दीप मालिका सजा मनाती दीवाली
    टेर रहा ब्रह्माण्डवंदिता मुरली   तेरा    मुरलीधर।।58।।

    उडुमोदक विधु दुग्ध कटोरा व्योम पात्र में भर मधुकर
    सच्चे प्रिय को भोग लगाती मुदित यामिनी नित निर्झर
    किरण तन्तु में गूंथ पिन्हाता हिमकर तारकमणिमाला
    टेर रहा संसृतिमहोत्सवा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।59।।

    सरित नीर सीकर शीतल ले सरसिज सुमन सुरभि मधुकर
    करता व्यजन विविध विधि मंथर मलय प्रभंजन मधु निर्झर
    सलिल सुधाकण अर्घ्य चढ़ाता उमग उमग कर रत्नाकर
    टेर रहा आनन्दउर्मिला   मुरली   तेरा    मुरलीधर।।60।।

  • मुरली तेरा मुरलीधर 8

    संश्लेशित जीवन मधुवन को खंड खंड मत कर मधुकर
    मधुप दृष्टि ही सृष्टि तुम्हारी वह मरुभूमि वही निर्झर
    तुम्हें निहार रहा स्नेहिल दृग सर्व सर्वगत नट नागर
    टेर रहा आनन्दतरंगा मुरली तेरा मुरलीधर।।51।।

    साध न कुछ बस साध यही साधना साध्य सच्चा मधुकर
    यह सच्ची चेतना उतर बन जाती है जागृति निर्झर
    वह है ही बस वह ही तो है अलि यह प्रेम समाधि भली
    टेर रहा अमितानुरागिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।52।।

    कोटि कला कर भी निज छाया पकड़ न पायेगा मधुकर
    सच्चे पद में ही मिट पातीं सब काया छाया निर्झर
    फंस संकल्प विकल्पों में क्यों झेल रहा संसृति पीड़ा
    टेर रहा है निर्विकल्पिका मुरली तेरा मुरलीधर।।53।।

    गिरि श्रृंगों को तोड़ फोड़ कर भूमि गर्भ मंथन मधुकर
    सूर्य चन्द्र तक पहुंच चीर कर नभ में मेघ पटल निर्झर
    उषा निशा सब दिशाकाल में मतवाला बन ढूँढ़ उसे
    टेर रहा है प्राणप्रमथिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।54।।

    विषय अनल में जाने कब से दग्ध हो रहा तू मधुकर
    कृष्ण प्रेम आनन्द सुधामय परम रम्य शीतल निर्झर
    उसे भूल जग मरुथल में सुख चैन खोजने चले कहाँ
    टेर रहा शाश्वतसुखाश्रया मुरली तेरा मुरलीधर।।55।।
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  • मुरली तेरा मुरलीधर 7

    जाग न जाने कब वह आकर खटका देगा पट मधुकर
    सतत सजगता से ही निर्जल होता अहमिति का निर्झर
    मूढ़ विस्मरण में निद्रा में मिलन यामिनी दे न बिता
    टेर रहा विस्मरणविनाशा मुरली तेरा मुरलीधर।।46।।

    क्या स्वाधीन कभीं रह सकता क्षुद्र भोग भोगी मधुकर
    क्षणभंगुर वासना बीच बहता न प्रीति का रस निर्झर
    भरा भरा भटकता बावरे रिक्त न निज को किया कभीं
    टेर रहा रिक्तान्तरालया मुरली तेरा मुरलीधर।।47।।

    बड़भागी हो सुन सच्चे का कितना प्यारा स्वर मधुकर
    जाते जहाँ वहीं बह जाता गुनगुन गीतों का निर्झर
    और मिले कुछ मिले न जग में बस अक्षय धन कृष्ण स्मरण
    टेर रहा प्रभुसम्पदालया मुरली तेरा मुरलीधर।।48।।

    अहोभाग्य तुमको ज्योतिर्मय करता है दिनमणि मधुकर
    नहलाता मनहर रजनी में उसका राकापति निर्झर
    धन्य धन्य तुमको प्रियतम का दुलराता तारा मंडल
    टेर रहा है विश्वंभरिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।49।।

    सुमनों की मधु सुरभि धार में तुम्हें बुलाता वह मधुकर
    वासंती किसलय में तेरे लिये लहरता रस निर्झर
    कली कली प्रति गली गली में रहा पुकार गंधमादन
    टेर रहा है सर्वमूर्तिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।50।।

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  • मुरली तेरा मुरलीधर 6

    सोच अरे बावरे कर्म से ही तो बना जगत मधुकर
    चल उसके संग रच एकाकी एक प्रीति पंकिल निर्झर
    प्राण कदंब छाँव में कोमल भाव सुमन की सेज बिछा
    टेर रहा सुखसृष्टिविधाना मुरली तेरा मुरलीधर।।41।।

    रख निश्शब्द स्नेह से उसके आनन पर आनन मधुकर
    भर ले रिक्त हृदय की गागर उमड़ा सच्चा रस निर्झर
    प्राणों से प्राणों का पंकिल चलने दे संवाद सरस
    टेर रहा है संवादसर्जिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।42।।

    सुमन सुमन प्रति कलिका कलिका मँडराता फिरता मधुकर
    क्षुधा पिपासा मिटी न युग से भटक रहा है तू निर्झर
    तू मन का मन नहीं तुम्हारा खंड खंड में फंसा चपल
    टेर रहा है क्लेशनाशिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।43।।

    फेरा तेरा जन्म जन्म का मिटा नहीं लम्पट मधुकर
    अभीं और कितना भटकेगा इस निर्झर से उस निर्झर
    बहिर्मुखी गुंजन से तेरी भग्न हुई जीवन वीणा
    टेर रहा है प्राणगुंजिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।44।।

    किया न अवलोकन अंतर्मुख मौन शान्त मानस मधुकर
    शान्त चित्त में ही विलीन हो पाता अहंकार निर्झर
    सुन विचार शून्यता बीच निज प्रियतम की पदचाप मधुर
    टेर रहा है शांतिसागरा मुरली तेरा मुरलीधर।।45।।

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