Author: Prem Narayan Pankil

  • मुरली तेरा मुरलीधर 20

    इन्द्रिय घट में भक्ति रसायन भर भर चखता रह मधुकर
    तन्मय चिन्तन सच्चा रस में देता तुम्हें बोर निर्झर
    कर त्रिकाल उस महाकाल के चरणामृत का आस्वादन
    टेर रहा नैवेद्यतुलसिका मुरली   तेरा    मुरलीधर।।111।।

    मन तो नित गिरता रहता है सलिल सदृश नीचे मधुकर
    कृष्ण स्मरण का यंत्र उसे ले उर्ध्व बना देता निर्झर
    सब संयोग वियोग जगत का हरि स्मृति में न वियोग कभीं
    टेर रहा संयोगसंधिनी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।112।।
    मिली वासना से ही काया इसे  स्मरण रखना मधुकर
    फिर जैसी वासना तुम्हारी वैसा होगा तन निर्झर
    बनना नहीं जनक जननी अब नहीं किसी की त्रिया तनय
    टेर रहा वैराग्यदीपिका  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।113।।

    इस मल मूत्रभरित तन में मत प्रेम बाँटता फिर मधुकर
    प्रेम पात्र बस सच्चा प्रियतम संसृति में न भटक निर्झर
    भुक्ता भोग्य सभी मिट जाते रस ही रस वह प्राणेश्वर
    टेर रहा है रसकदम्बिनी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।114।।

    नहीं काष्ठगत अप्रकट पावक ऊष्मा देता है मधुकर
    भीतर की प्रकटिता अग्नि जब तब होती दाहक निर्झर
    बाहर भीतर के नारायण को कर एकाकार स्वरित
    टेर रहा सारूप्यसुन्दरी   मुरली   तेरा    मुरलीधर।।115।।

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    अन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –

    # मैंने जो क्षण जी लिया है … (सच्चा शरणम )

  • मुरली तेरा मुरलीधर 19

    अहं रहित मह मह महकेंगे तेरे प्राण सुमन मधुकर
    स्निग्ध चाँदनी नहला देगी चूमेगा मारुत निर्झर
    तुम्हें अंक में ले हृदयेश्वर हलरायेगा मधुर मधुर
    टेर रहा है मूलाधारा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।106।।

    उर वल्लभ के पद शतदल में मरना मिट जाना मधुकर
    रस समाधि में  खो जाते ही होगा सब अशेष निर्झर
    अनजाने अबाध उमड़ेगी भावों की उर्मिल सरिता
    टेर रहा है भावमालिनी  मुरली  तेरा  मुरलीधर।।107।।

    एक न एक दिवस जीवन में मरण सुनिश्चित है मधुकर
    कभीं मृत्यु विस्मृत न रहे यह सुधि जागृत रखना निर्झर
    सात दिनों में कोई दिन निश्चित आयेगा लिये मरण
    टेर रहा है मृत्युविजयिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।108।।

    संसारी तू तन सम्हालता मन विचरता मुक्त मधुकर
    तुम्हे न पता मृत्यु तन की मन साथ सदा रहता निर्झर
    मन की ही सम्हाल करता चल सदा विवेकी धीर मना
    टेर रहा चैतन्यरुपिणी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।109।।

    तू न जगत का है अपने प्रभु का है यही सोच मधुकर
    नहीं किसी प्रमदा का नर का केवल हरि का ही निर्झर
    जीवन मरण बना ले दोनों सच्चा स्मृतिरसमय पंकिल
    टेर रहा है मंगलसदनी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।110।।

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    अन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –

    # जागो मेरे संकल्प मुझमें … (सच्चा शरणम )

  • मुरली तेरा मुरलीधर 18

    अपनी ही विरचित कारा में बंधा तड़पता तू मधुकर
    nअपनी ही वासना लहर से पंकिल किया प्राण निर्झर
    nउस प्रिय की कर पीड़ा हरणी चरण कमल की सुखद शरण
    nटेर रहा है प्रीतिपंकिला  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।101।।
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    nगीत वही तेरे अधरों पर स्वर उसका ही है मधुकर
    nनयन तुम्हारे हैं जो उनकी ज्योति वही पुतली निर्झर
    nभर आये दृग की भाशा का वह पढ़ पढ़ संवादी स्वर
    nटेर रहा है मर्मभेदिनी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।102।।
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    nअधरों पर मुस्कान सजा भर नयनों में पानी मधुकर
    nअपने प्राणों के राजा को भेंज प्रेम पाती निर्झर
    nगीत अधर पर सुधि सिरहाने रोम रोम में भर सिहरन
    nटेर रहा है प्रीतिविह्वला   मुरली   तेरा    मुरलीधर।।103।।
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    nकहाॅं भाग कर जायेगा प्राणेश वाटिका से मधुकर
    nतुम्हें मिलेगा गीत सुनाता नित नित नवल नवल निर्झर
    nशरद शिशिर हेमन्त वसन्ती ऋतु रवि शशि में हो द्युतिमय
    nटेर रहा है विराटवपुशीला  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।104।।
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    nउसके सरसिज पद परिमल से निज सिर पंकिल कर मधुकर
    nक्या पाया उसको न सोच क्या खोया यही देख निर्झर
    nरिक्त बनोगे तो पाओगे प्रियतम प्राण रसाकर्शण
    nटेर रहा है निरहंकारा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।105।।
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    nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
    n# कैसे ठहरेगा प्रेम जन्म-मृत्यु को लाँघ …. (सच्चा शरणम)

  • मुरली तेरा मुरलीधर 17

    वह कितनी सौभाग्यवती है अभिरामा वामा मधुकर
    nकुलानन्दिनी कीर्तिसुता की अंश स्वरुपा वह निर्झर
    nउसकी पद नख द्युति से कर ले अपना अंतर तिमिर हरण
    nटेर रहा है दुरितदारिणी   मुरली   तेरा    मुरलीधर।।96।।
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    nरो ले जी भर कर रो ले रे अश्रु अमोलक धन मधुकर
    nप्रियतम का पद कमल पखारें तेरे स्नेह नयन निर्झर
    nअभिनन्दन कर अश्रु अर्घ्य से लोक लाज कर आज विदा
    nटेर रहा है सलिलार्द्रलोचना  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।97।।
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    nकृपण न बन अंतर की पीड़ा दृग में भरने दे मधुकर
    nछिपा न मूढ़ टपक जाने दे नयनों का व्याकुल निर्झर
    nये संवादी अश्रु तुम्हारी सब कह देंगे व्यथा कथा
    nटेर रहा है पलकाश्रयिणी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।98।।
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    nवृथा कटे जा रहे दिवस तू फूट फूट कर रो मधुकर
    nबिना रुदन के कभी उमड़ कर प्रवहित कहाँ प्राण निर्झर
    nऋणी बना सकती प्रियतम को तेरी लघु आँसू कणिका
    nटेर रहा है रागवर्धिनी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।99।।
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    nजो होगा होने दे पहले उससे भेंट ललक मधुकर
    nसच्चा रति से निर्मल कर ले अंतर का पंकिल निर्झर
    nसमय कहाँ रे कब चेतेगा कब से देख रहा है पथ
    nटेर रहा है सम्प्रबोधिनी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।100।।
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    nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
    n# हिन्दी दिवस पर क्वचिदन्यतोऽपि…..   (सच्चा शरणम )

  • मुरली तेरा मुरलीधर 16

    भर जाते नख शिख पावस घन विकल बरसने को मधुकर
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    जितनी प्यासी भू उतने ही प्यासे हैं नीरद निर्झर
    तूँ जितना व्याकुल उतना ही व्याकुल है तेरा प्राणेश्वर
    टेर रहा उद्वेलितान्तरा  मुरली तेरा  मुरलीधर।।91।।
    इतना सुख इतनी सुन्दरता इतनी क्रीड़ायें मधुकर
    इतनी अभिलाषायें इतनी रसमय आशायें निर्झर
    और कहाँ केवल उसमें ही उसमें रम उसका ही बन
    टेर रहा है नेहनिगमना  मुरली तेरा  मुरलीधर।।92।।
    उस प्रिय की तज अमृत बिन्दु पी रहा हलाहल क्यों मधुकर
    उसके रंग में क्यों न बावरे रंग देता जीवन निर्झर
    देख मनोहर शरद चन्द्र सी हॅंसी विषाल विमल लोचन
    टेर रहा है छविवारिषा  मुरली  तेरा  मुरलीधर।।93।।
    भाव अभाव शुभाशुभ सुख दुख उसके वेणु रंध्र मधुकर
    कौन छिद्र कब खोल बजा दे मौन करे किसको निर्झर
    उसकी लीला का विलास ही आगत विगत अनागत सब
    टेर रहा भवविभवकारिणी मुरली  तेरा  मुरलीधर।।94।।
    नेति नेति कह कह श्रुति करती नित जिसका बखान मधुकर
    रस पिपासु खोजता चिरंतन वही कृष्ण राधा निर्झर
    इन्द्रिय वृन्द गोपिकायें है आत्मा ही  राधारानी
    टेर रहा है रासपूर्णिमा  मुरली  तेरा   मुरलीधर।।95।।

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    nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
    n# कानून ताज़ीरात शौहर : भारतेन्दु हरिश्चन्द्र-3……(सच्चा शरणम )

  • विनय की कविता (ऑडियो)

    nपाँच-छः वर्ष पहले हमारे कस्बे में हुए एक कवि-सम्मेलन, जो आकाशवाणी वाराणसी के तत्कालीन निदेशक श्री शिवमंगल सिंह ’मानव” की पुस्तक के विमोचन पर आयोजित था व जिसकी अध्यक्षता श्री चन्द्रशेखर मिश्र जी ने की थी, में बाबूजी द्वारा पढ़ी गयी भोजपुरी कविता की बमुश्किल रिकार्डेड ऑडियो फाइल प्रस्तुत है । इसमें बाबूजी ने जगतजननी के चरणों में अपना विनय प्रदर्शित किया है –
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    nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
    n# रमणी के नर्म वाक्यों से खिल उठा मंदार (वृक्ष-दोहद….)…. सच्चा शरणम
  • मुरली तेरा मुरलीधर 15

    वह अनकहे स्नेह चितवन से उर में धँस जाता मधुकर
    इस जीवन के महाकाव्य की सबसे सरस पंक्ति निर्झर
    जन अंतर के रीते घट में भरता पल पल सुधा सलिल
    टेर रहा है विभवभूषणा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।86।।
    मरना उसके लिये उसी के हित ही हो जीना मधुकर
    उसको ही ले तैर उसी को ले कर डूब यहाँ निर्झर
    कंध देश पर रख तुमको परिरंभण में ले बचा बचा
    टेर रहा सौभाग्यवर्धिनी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।87।।
    अंगुलि से पोंछता कपोलों पर ढुलकते अश्रु मधुकर
    निज अम्बर से ढंक देता सिहरता तुम्हारा तन निर्झर 
    श्वांसों से भी अति समीप आ आलिंगन में बाँध तुम्हें
    टेर रहा है भावविभोरा मुरली   तेरा    मुरलीधर।।88।।
    किसे पता कब डूब जाय यह कागज की नौका मधुकर
    पहले उससे मिल ले पीछे जो इच्छा हो कर निर्झर
    प्राण विहंगम विषम पींजरे में छटपटा रहा कब से
    टेर रहा मुक्तअम्बरा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।89।।
    बॅंध जाना बाँधना भली विधि उसने सीखा है मधुकर
    हिला मृदुल दूर्वा दल अंगुलि बुला रहा पल पल निर्झर
    पर्वत पर्वत शिखर शिखर पर गुंजित कर सस्वर वंशी
    टेर रहा है स्नेहिलरागा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।90।।

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    nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
    n# गुरु की पाती……. (सच्चा शरणम )

  • मुरली तेरा मुरलीधर 14

    कोटि काम सुन्दर गुण मन्दिर कोटि कला नायक मधुकर
    अपने हृदयेश्वर के आगे थिरक थिरक नाचो निर्झर
    उर वृन्दावन चारी को मन दे उनके मन वाला बन
    टेर रहा गठबंधनोत्सुका मुरली तेरा मुरलीधर।।81।।

    पतिव्रतरता कीर्ति वनिता पुंश्चली नहीं प्रमदा मधुकर
    एक मात्र सच्चे प्रभु का ही उसने किया वरण निर्झर
    उसकी आशा छोड़ ललक कर जीवन धन का आलिंगन
    टेर रहा पुरुषोत्तमाश्रया मुरली तेरा मुरलीधर।।82।।

    आँख बिछा दे इसी मार्ग से आने वाला है मधुकर
    छलक छलक फिर फिर भरने दे व्याकुल विरह नयन निर्झर
    वह आँखों में आँख डालकर रस धाराधर मंद हसन
    टेर रहा है स्नेहस्निग्धिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।83।।

    सच्चे में सब भाॅंति समाहित सदा तुम्हारा हित मधुकर
    डूब उसी में वहीं तरंगित अद्भुत मोहन रस निर्झर
    मत तट पर रुक बह धारा में उसकी लहरों बीच बिछल
    टेर रहा अंतस्तरंगिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।84।।

    जीवन जीर्ण तरी सागर में हिचकोले खाती मधुकर
    बिन पतवार न कोई खेवनहार अथाह प्रलय निर्झर
    विषम काल में परम हितैशी सच्चा दुख दारिद्र्य दमन
    टेर रहा है कल्पविटपिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।85।।

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    अन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
    # तीज पर सुनिये एक झूला-गीत……….(सच्चा शरणम)
    # तुलसी जयंती पर तुलसीदास का एक भजन…….(नया प्रयत्न )