Author: Prem Narayan Pankil

  • मुरली तेरा मुरलीधर 28

    उसका ही विस्तार विषद ढो रहा अनन्त गगन मधुकर
    nमन्दाकिनी सलिल में प्रवहित उसकी ही शुचिता निर्झर
    nउस प्रिय का अरविन्द चरण रस सकल ताप अभिशाप शमन
    nटेर रहा पीयूशवर्षिणी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।151।।
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    nमिलन स्वप्न कर पूर्ण जाग मनमोहन मंदिर में मधुकर
    nरसमय सच्चालोकवलय में  बनकर शून्य बिखर निर्झर
    nप्राणेश्वर मंदिर के दीपक की बाती बन तिल तिल जल
    nटेर रहा है शून्यसहचरी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।152।।
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    nप्राणों में अनुभूति न तो सब व्यर्थ साधनायें मधुकर
    nसपनों का कंकाल ढो रहा मृगमरीचिका में निर्झर
    nसुन अक्षत शाश्वत कलरव से तेरा मन कर उद्वेलित
    nटेर रहा है चिरअभीप्सिता मुरली   तेरा    मुरलीधर।।153।।
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    nमहाप्राण बन महाप्राण कर परिवर्तन अपना मधुकर
    nधो दे प्रियतम प्रीति किरण से चिर तमिस्र अंतर निर्झर
    nगुण अवगुण पंकिल मारुत में कर मत कंपित बोध शिखा
    nटेर रहा है गतिरनुत्तमा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।154।।
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    nबरसें तेरे विरही लोचन उमड़े सुधि बदली मधुकर
    nतरल पीर बन दृग पलकों से झरने दे स्नेहिल निर्झर
    nप्रभु अनुराग घटा पंकिल हो प्राण गगन कोना कोना
    nटेर रहा सच्चाम्बुपयोदा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।155।।
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    nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
    n# मेरी अमित हैं वासनायें (गीतांजलि का भावानुवाद)… (सच्चा शरणम )

  • मुरली तेरा मुरलीधर 27

    खड़े दर्शनार्थी अपार दरबार सजा उसका मधुकर
    उपहारों की राशि चरण पर उसके रही बिछल निर्झर
    मुखरित गृह मुँह जोह रहे सब किन्तु न जाने क्यों आकुल
    टेर रहा है प्रियाविरहिता मुरली   तेरा    मुरलीधर।।146।।

    प्रथम रश्मि की स्मिति में मधुरिम खोल कमल आनन मधुकर
    नभ में उड़ते जलद विहंगम के स्वर गीतों में निर्झर
    चपल प्रभंजन जलधि तरंगों में कर तेरा नाम स्मरण
    टेर रहा  स्वजनानुसंधिनी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।147।।

    माँग माँग सच्चे शतदल से रस पीयूष तृषित मधुकर
    विजय पराजय हर्ष रुदन से क्षुभित न कर अंतर निर्झर
    वह तेरी श्रम सिक्त अलक पर स्नेहिल अंगुलि फिरा फिरा
    टेर रहा अमन्दआत्मीया  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।148।।

    तम से क्या भय वह तेरे साँवलिया की छाया मधुकर
    मरण भीति क्या वह सच्चे प्रियतम की कर शय्या निर्झर
    दुख तो उसका तीर्थाटन आनन्द पुलक में प्रकट वही
    टेर रहा निर्भयानन्दिनी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।149।।

    वायु प्रकाश सलिल भू अम्बर उसके मधुर छन्द मधुकर
    उस विराट के रागाकर्षण का नित सजल स्रोत निर्झर
    उस की ही चेतना विश्व का प्रलय सृजन फेनिल पंकिल
    टेर रहा है दिगदिगंतिनी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।150।।

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    अन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ

    # एक दीया गीतों पर रख दो …. (सच्चा शरणम )

  • मुरली तेरा मुरलीधर 26

    देख शरद वासंती कितने हुए व्यतीत दिवस मधुकर
    काल श्रृंखलाबद्ध अस्त हो जाता भास्वर रवि निर्झर
    भग्न पतित कमलों की परिमल सुरभि उड़ा ले गया पवन
    टेर रहा है कालविजयिनी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।141।।

    मूढ़ जुटाता रहा मनोरथ के निर्गंध सुमन मधुकर
    सच्चा के अर्चा की मधुमय वेला बीत गयी निर्झर
    अंध तिमिर में अहा भटकता तू अब भी दिग्भ्रान्त पथिक
    टेर रहा है दिशालोकिनी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।142।।

    शरद पूर्णिमा में ज्योत्सना का फेनिल हास बिछा मधुकर
    भ्रमित पवन में गन्ध लता का कर मुखरित नर्तन निर्झर
    करुण पपीहा के स्वर में झंकृत कर प्राणों की वीणा
    टेर रहा है विरहोच्छ्वसिता मुरली   तेरा    मुरलीधर।।143।।

    एक एक कर खुली जा रहीं सारी नौकाएँ मधुकर
    स्वागत में बाँहें फैलाये स्थित ज्योतिर्मय रस निर्झर
    तू कैसी गोपी बैठी ले मुरझायी पंकिल माला
    टेर रहा है चारुहासिनी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।144।।

    तेरी भग्न वीण से कोई राग नहीं झंकृत मधुकर
    स्तंभित चरण नृत्य के तेरे स्तब्ध हुए नूपुर निर्झर
    और न कुछ आँसू तो होंगे उनका ही ग्राहक सच्चा
    टेर रहा है जगदालम्बा मुरली   तेरा    मुरलीधर।।145।।

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    अन्य चिट्ठॊं की प्रविष्टियाँ –

    # तुमने मुझे एक घड़ी दी थी ….  (सच्चा शरणम )

  • मुरली तेरा मुरलीधर 25

    भेंट सच्चिदानन्द ईश को मुक्त प्रभंजन में मधुकर
    सत निर्मल आकाश पवन चित नित तेजानन्द सतत निर्झर
    विविध वर्णमयि विश्व वस्तुयें प्रियतम का रंगालेखन
    टेर रहा है चित्रमालिनी  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।136।।

    सच्चा संस्तुत अपरिग्रह ही श्वांसोच्छ्वास समझ मधुकर
    तन की तुष्टि सम्हाल रच रहा तू जीवन बंधन निर्झर
    मुख्य परिग्रह देह देह का भाव न रख निर्भार विचर
    टेर रहा है मुक्तछंदिनी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।137।।

    मेघ वारि बरसते नहीं देखते शैल गह्वर मधुकर
    व्यर्थ सलिल बहता रह जाती रिक्ता गिरि माला निर्झर
    पूर्वभरित में क्या भर सकता नहीं वहाँ कोई उत्तर
    टेर रहा  रिक्तान्वेषिणी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।138।।

    जान न कुछ जीवन धन को ही जान पूर्णता में मधुकर
    यही तुम्हारा चरम लक्ष्य सब धर्म धारणायें निर्झर
    सीखा ज्ञान भुला निहार ले प्रभु रचना आश्चर्यमयी
    टेर रहा आश्चर्यमंदिरा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।139।।

    विकट पेट की क्षुधा पूर्ति हित विविध स्वांग रच रच मधुकर
    मायावी नट सरिस वंचना का विधान रचता निर्झर
    हीरा जीवन राख कर दिया बना कीच पंकिल पगले
    टेर रहा है ब्रह्मविहरिणी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।140।।

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    अन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –

    # के० शिवराम कारंत : मूकज्जी के मुखर सर्जक .. (सच्चा शरणम )

  • मुरली तेरा मुरलीधर 24

    भूत मात्र में व्याप्त ईश का सूत्र न छोड़ कभीं मधुकर
    कर्म त्याग संभव न त्याग भी तो है एक कर्म निर्झर
    रज्जु सर्प ताड़न या उससे सभय पलायन व्यर्थ युगल
    टेर रहा है तत्वदर्शिनी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।131।।

    आत्मा शिव शव देंह तुम्हारा जीवन ही मरघट मधुकर
    नर शरीर की पकड़ कुल्हाड़ी काट अपर काया निर्झर
    हो निमित्त अहमिति तज बन जा कृष्ण कराम्बुज की मुरली
    टेर रहा है कृपावर्षिणी  मुरली  तेरा  मुरलीधर।।132।।

    अरे विचार प्रबल मारुत में झिझक ठिठक ठहरा मधुकर
    तेरे गतिमय चिन्तन की भी हुई अदृश्य दिशा निर्झर
    ऐसी स्थिति में करुण ईश्वर की कृपा बिना है त्राण कहाँ
    टेर रहा है लाललालिता मुरली  तेरा  मुरलीधर।।133।।

    नर गृह में दीवार दोष  हैं गुण ही दरवाजा मधुकर
    दीवारों से ही टकरा क्यों फोड़ रहा है सिर निर्झर
    दृग न खुले या फिरा निरर्थक दोनों ही तो अंधापन
    टेर रहा उन्मिलितनयना  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।134।।

    वस्तु स्वरूप बदलतीं क्षण क्षण मिथ्या इसे न कह मधुकर
    लीलाधर की प्रकट भंगिमायें हैं सभी समझ निर्झर
    बुद्धि न श्रद्धा सदृश पावनी श्रद्धा सम बलवान कहाँ
    टेर रहा श्रद्धातरंगिणी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।135।।

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    अन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –

    # मैं सहजता की सुरीली बाँसुरी हूँ … (सच्चा शरणम )

  • मुरली तेरा मुरलीधर 23

    मुख मन अन्तर श्वाँस श्वाँस सब सच्चामय कर दे मधुकर
    सच्चा प्रेम सार जग में कुछ और न सार कहीं निर्झर
    जागृति स्वप्न शयन में तेरे बजे अखण्ड वेणु उसकी
    टेर रहा अनवरतगुंजिता  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।126।।
    जो कर रहा प्राणधन तेरा भला कर रहा है मधुकर
    क्या उलाहना कैसा संशय यह कैसा विषाद निर्झर
    श्रद्धा में संदेह न रख बस कह दे तू ही कर जो कर
    टेर रहा है अर्पितान्तरा  मुरली तेरा मुरलीधर।।127।।

    चाह रहा सुख मिलता है दुख ही दुख क्यों तुमको मधुकर
    संशय सर्प ग्रसित क्षण क्षण कंपित मन तू रहता निर्झर
    लक्ष्य बेध से चूक संशयी दुखी रहेगा ही  निश्चय
    टेर रहा लक्ष्यवेधिनी  मुरली  तेरा   मुरलीधर।।128।।

    शोभामय अति अज्ञान क्यों कि है क्षमावान मोहन मधुकर
    गिरा तोतली भली क्योंकि है स्नेहमयी जननी निर्झर
    सृष्टि परमप्रिय क्योंकि मधुर सच्चास्वरूपिणी रम्य सदा
    टेर रहा सर्वांगसुन्दरी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।129।।

    चाहे जैसी भी जीवन में प्राप्त परिस्थिति हो मधुकर
    उसको भाग्य बना लेने की कला सीखता चल निर्झर
    सच्चा से नाता हो तो घर आ जाते सौभाग्य सकल
    टेर रहा है भाग्यविधात्री मुरली तेरा  मुरलीधर।।130।।

     

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    अन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ :

    # याद कर रहा हूँ तुम्हें सँजो कर अपना एकान्त..  (सच्चा शरणम )

  • मुरली तेरा मुरलीधर 22

    दुख का मुकुट पहन कर तेरे सम्मुख सुख आता मधुकर
    सुख का स्वागत करता तो दुख का भी स्वागत कर निर्झर
    सुख न रहा तो दुख भी तेरे साथ नहीं रहने वाला
    टेर रहा क्रीड़ाविशारदा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।121।।

    प्रेम भिखारी न उससे कुछ भी माँग कभीं मधुकर
    बूँद बूँद अपनी निचोड़ कर अर्पित कर देना निर्झर
    उसका रस पी अनरस देंगी स्वयं वस्तुएँ छोड़ तुम्हें
    टेर रहा है सुधिपयस्विनी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।122।।

    गृह में  रखी स्वर्णमंजूषा देख देख तस्कर मधुकर
    सो सकता है कभीं न सुख की नींद स्वर्णलोभी निर्झर
    सच्चा प्रेमी कर सकता क्या अपर वस्तु से स्नेह कभीं
    टेर रहा है स्वात्महिरण्या मुरली   तेरा    मुरलीधर।।123।।

    तू सच्चा स्मृति का शतदल बन पॅंखुरी पॅंखुरी खिल मधुकर
    झुण्ड झुण्ड फिर मॅंडरायेंगे लोभी भाव भ्रमर निर्झर
    ऊर्ध्वमुखी इन्द्रियाँ परिष्कृत चित्त बना मन कृष्णमना
    टेर रहा है मुक्तिहंसिनी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।124।।

    सार्थकता है यही बीज की उससे फूटे तरु मधुकर
    तरु सार्थक है जब उस पर झूलें अभिलाष सुमन निर्झर
    किन्तु अभीप्सा ही न मचलती रहे उसे फलवती बना
    टेर रहा है फलितवल्लरी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।125।।

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    अन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –

    नमन् अनिर्वच ! (गांधी-जयंती पर विशेष ) …….. (सच्चा शरणम )

  • मुरली तेरा मुरलीधर 21

    स्वाद सुधा में है पदार्थ में स्वाद न पायेगा मधुकर
    सुख तो सब उसे सच्चे प्रिय में कहाँ खोजता रस निर्झर
    मन गृह में जम गयी धूल को पोंछ डाल आनन्द पथी
    टेर रहा संसारनाशिनी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।116।।

    यदि संस्कार वासनाओं से पंकिल बना रहा मधुकर
    लाख रचो केसर की क्यारी कस्तूरी का रस निर्झर
    अरे प्याज तो प्याज रहेगी वहाँ सुरभि खोजना वृथा
    टेर रहा है सुरभिनिमग्ना मुरली   तेरा    मुरलीधर।।117।।

    विश्व प्रकट परमात्मा ही है तुम शरीर यह भ्रम मधुकर
    तुम ईश्वर हो ईश्वर के हो बोध न कर विस्मृत निर्झर
    ईश बना मानव तो फिर से मानव ईश बनेगा ही
    टेर रहा है निजस्वरूपिणी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।118।।

    तुम अपने को देह मान ही जग से अलग थलग मधुकर
    जीव  मान कर ही अनन्त पावक का एक स्फुलिंग निर्झर
    आत्म स्वरूप समझ लेते ही फिर विराट हो विश्व तुम्हीं
    टेर रहा ब्रह्माण्डगोचरा  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।119।।

    कृष्ण प्रीति सरि में न नहाया खाली हाथ गया मधुकर
    रिक्त हस्त ही अपर जन्म में फिर रह जायेगा निर्झर
    कण कण में झंकृत है उसकी स्वर लहरी उल्लासमयी
    टेर रहा है योनिरुत्तमा मुरली   तेरा    मुरलीधर।।120।।

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    अन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ

    # अति प्रिय तुम हमसे अनन्य हो गये..  (सच्चा शरणम )