मुरली तेरा मुरलीधर 32

अपने ही लय में तेरा लय मिला मिला गाता मधुकर
nअक्षत जागृति कवच पिन्हा कर गुरु अभियान चयन निर्झर
nतुमको निज अनन्त वैभव की सर्वस्वामिनी बना बना
nटेर रहा है भूतिभूषणा मुरली  तेरा   मुरलीधर।।171।।
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nदृग खुलते झलकता पलक झंपते ही आ जाता मधुकर
nबुला लिया है तो न लौटकर फिर जाने देता निर्झर
nकभीं न कुम्हिलाने वाली अपनी वरमाला पहनाकर
nटेर रहा है रहसरंगिणी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।172।।
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nसुख दुख पाप पुण्य दिन रजनी मरण अमरता में मधुकर
nऊर्ध्व अधः सुर असुर जीव जगदीश्वर में न बॅंधा निर्झर
nनिगम ‘‘रसोवैसः आनन्दोवैसः’’ कह करते गायन
nटेर रहा है श्रुत्यर्थमण्डिता मुरली   तेरा    मुरलीधर।।173।।
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nश्वेत केश मुख दशन रहित कटि झुकी जरा जरजर मधुकर
nरस विरहित शोणित वाहिनियाँ झूली श्लथ काया निर्झर
nदेखो जीवन छाया पट पर उसका यह भी चित्रांकन
nटेर रहा है रचनाविशारदा मुरली   तेरा    मुरलीधर।।174।।
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nअश्रु मुखी अनमनी म्लान रहने न तुम्हें देगा मधुकर
nअपने दिनमणि पर भरोस रख तू सरसिज कलिका निर्झर
nतेरी पीड़ा का निदान है प्रियतम की अम्लान हॅंसी
nटेर रहा है लोमहर्षिणी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।175।।

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