मन सागर पर मनमोहन की उतरे मधु राका मधुकर
nप्राण अमा का सिहर उठे तम छू श्रीकृष्ण किरण निर्झर
nप्रियतम छवि की अमल विभा से हो तेरा तन मन बेसुध
nटेर रहा है भुवनसुन्दरी मुरली तेरा मुरलीधर।।156।।
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nप्राणेश्वर अभ्यंग सलिल की सुधा जाह्नवी में मधुकर,
nमज्जन कर उनके पद पंकज रज का कर चंदन निर्झर
nप्राण कलेवा के जूठन का कर ले महाप्रसाद ग्रहण
nटेर रहा है प्रीतिमधुमती मुरली तेरा मुरलीधर।।157।।
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nचिदानन्दमय उस काया की छाया चूम चूम मधुकर
nउसकी पद रज में बिछ जा उड़ उसके अम्बर में निर्झर
nकर परिक्रमा उसकी उससे सीख सुहागिन प्रीति कथा
nटेर रहा है प्रेमपर्वणी मुरली तेरा मुरलीधर।।158।।
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nसात्विक श्रद्धा दीवट पर विश्वास प्रदीप जला मधुकर
nप्राण गुफा से बहने दे प्रिय मिलन राग सस्वर निर्झर
nललक उतरने दे पलकों पर कृष्ण प्रतीक्षा का पंछी
nटेर रहा है प्रीतिचन्दिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।159।।
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nजन्म जन्म की कृपण भावना हरने को उत्सुक मधुकर
nरोम रोम में पीर नयन में भर भर अश्रु सलिल निर्झर
nनिज मधुमय परिचय देने को आतुर प्रियतम उमग उमग
nटेर रहा है प्राणसंगिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।160।।
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मुरली तेरा मुरलीधर 29
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