उसका ही विस्तार विषद ढो रहा अनन्त गगन मधुकर
nमन्दाकिनी सलिल में प्रवहित उसकी ही शुचिता निर्झर
nउस प्रिय का अरविन्द चरण रस सकल ताप अभिशाप शमन
nटेर रहा पीयूशवर्षिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।151।।
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nमिलन स्वप्न कर पूर्ण जाग मनमोहन मंदिर में मधुकर
nरसमय सच्चालोकवलय में बनकर शून्य बिखर निर्झर
nप्राणेश्वर मंदिर के दीपक की बाती बन तिल तिल जल
nटेर रहा है शून्यसहचरी मुरली तेरा मुरलीधर।।152।।
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nप्राणों में अनुभूति न तो सब व्यर्थ साधनायें मधुकर
nसपनों का कंकाल ढो रहा मृगमरीचिका में निर्झर
nसुन अक्षत शाश्वत कलरव से तेरा मन कर उद्वेलित
nटेर रहा है चिरअभीप्सिता मुरली तेरा मुरलीधर।।153।।
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nमहाप्राण बन महाप्राण कर परिवर्तन अपना मधुकर
nधो दे प्रियतम प्रीति किरण से चिर तमिस्र अंतर निर्झर
nगुण अवगुण पंकिल मारुत में कर मत कंपित बोध शिखा
nटेर रहा है गतिरनुत्तमा मुरली तेरा मुरलीधर।।154।।
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nबरसें तेरे विरही लोचन उमड़े सुधि बदली मधुकर
nतरल पीर बन दृग पलकों से झरने दे स्नेहिल निर्झर
nप्रभु अनुराग घटा पंकिल हो प्राण गगन कोना कोना
nटेर रहा सच्चाम्बुपयोदा मुरली तेरा मुरलीधर।।155।।
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nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
n# मेरी अमित हैं वासनायें (गीतांजलि का भावानुवाद)… (सच्चा शरणम )
मुरली तेरा मुरलीधर 28
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