वह कितनी सौभाग्यवती है अभिरामा वामा मधुकर
nकुलानन्दिनी कीर्तिसुता की अंश स्वरुपा वह निर्झर
nउसकी पद नख द्युति से कर ले अपना अंतर तिमिर हरण
nटेर रहा है दुरितदारिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।96।।
n
nरो ले जी भर कर रो ले रे अश्रु अमोलक धन मधुकर
nप्रियतम का पद कमल पखारें तेरे स्नेह नयन निर्झर
nअभिनन्दन कर अश्रु अर्घ्य से लोक लाज कर आज विदा
nटेर रहा है सलिलार्द्रलोचना मुरली तेरा मुरलीधर।।97।।
n
nकृपण न बन अंतर की पीड़ा दृग में भरने दे मधुकर
nछिपा न मूढ़ टपक जाने दे नयनों का व्याकुल निर्झर
nये संवादी अश्रु तुम्हारी सब कह देंगे व्यथा कथा
nटेर रहा है पलकाश्रयिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।98।।
n
nवृथा कटे जा रहे दिवस तू फूट फूट कर रो मधुकर
nबिना रुदन के कभी उमड़ कर प्रवहित कहाँ प्राण निर्झर
nऋणी बना सकती प्रियतम को तेरी लघु आँसू कणिका
nटेर रहा है रागवर्धिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।99।।
n
nजो होगा होने दे पहले उससे भेंट ललक मधुकर
nसच्चा रति से निर्मल कर ले अंतर का पंकिल निर्झर
nसमय कहाँ रे कब चेतेगा कब से देख रहा है पथ
nटेर रहा है सम्प्रबोधिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।100।।
n
n ———————————————————————
nआपकी टिप्पणी से प्रमुदित रहूँगा । कृपया टिप्पणी करने के लिये प्रविष्टि के शीर्षक पर क्लिक करें । साभार ।
n———————————————————————-
n
nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
n# हिन्दी दिवस पर क्वचिदन्यतोऽपि….. (सच्चा शरणम )
मुरली तेरा मुरलीधर 17
Published:
By
Categorized in:
Last Updated:
Share Article:
Leave a Reply