आँखों से मन मत बिगड़े…

अनासक्त सब सहो जगत के झंझट झगड़े
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nऐसा यत्न करो आँखों से मन मत बिगड़े।

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nमौन साध नासाग्र दृष्टि रख नाम सम्हालो 

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nमन छोटा मत करो काम कल पर मत टालो।

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nउसे पुकारो उसे रात दिन का हिसाब दो 

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nमहापुरुष को सर्व समर्पण की किताब दो।
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nरहो जागते दुरित दोष का गला दाब दो

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nपत्थर मार रहे उसके बदले गुलाब दो।

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nसर्जक बनो न रचना दुःखान्तक खराब दो

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n’पंकिल’ इस दुनिया को जीवन से जवाब दो।

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