मुरली तेरा मुरलीधर 7

जाग न जाने कब वह आकर खटका देगा पट मधुकर
सतत सजगता से ही निर्जल होता अहमिति का निर्झर
मूढ़ विस्मरण में निद्रा में मिलन यामिनी दे न बिता
टेर रहा विस्मरणविनाशा मुरली तेरा मुरलीधर।।46।।

क्या स्वाधीन कभीं रह सकता क्षुद्र भोग भोगी मधुकर
क्षणभंगुर वासना बीच बहता न प्रीति का रस निर्झर
भरा भरा भटकता बावरे रिक्त न निज को किया कभीं
टेर रहा रिक्तान्तरालया मुरली तेरा मुरलीधर।।47।।

बड़भागी हो सुन सच्चे का कितना प्यारा स्वर मधुकर
जाते जहाँ वहीं बह जाता गुनगुन गीतों का निर्झर
और मिले कुछ मिले न जग में बस अक्षय धन कृष्ण स्मरण
टेर रहा प्रभुसम्पदालया मुरली तेरा मुरलीधर।।48।।

अहोभाग्य तुमको ज्योतिर्मय करता है दिनमणि मधुकर
नहलाता मनहर रजनी में उसका राकापति निर्झर
धन्य धन्य तुमको प्रियतम का दुलराता तारा मंडल
टेर रहा है विश्वंभरिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।49।।

सुमनों की मधु सुरभि धार में तुम्हें बुलाता वह मधुकर
वासंती किसलय में तेरे लिये लहरता रस निर्झर
कली कली प्रति गली गली में रहा पुकार गंधमादन
टेर रहा है सर्वमूर्तिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।50।।

—————————————————————–

आपकी टिप्पणी से प्रमुदित रहूँगा कृपया टिप्पणी करने के लिये यहाँ अथवा प्रविष्टि के शीर्षक पर क्लिक करें साभार

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *