nपट खटका खटका पीडा देती सन्देश तुम्हे मधुकर
nबौरे निशितम मे भी तेरा जाग रहा प्रियतम निर्झर
nप्रेममिलन हित बुला रहा है जाने कब से सुनो भला
nटेर रहा सन्देशशिल्पिनी मुरली तेरा मुरलीधर॥२५६॥
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nअंह तुम्हारा ही तेरा प्रभु वन चल रहा साथ मधुकर
nबन्दी हो उससे ही जिसका स्वयं किया सर्जन निर्झर
nप्रभु न दीख पडते प्रतिदिन बीतते जा रहे नाच नचा
nटेर रहा है अहं अलिप्ता मुरली तेरा मुरलीधर ॥२५७॥
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Author: Prem Narayan Pankil
मुरली तेरा मुरलीधर 48
nमुरली तेरा मुरलीधर 47
nnखिल हँसता सरसिज प्रसून तूँ रहा भटकता मन मधुकर
nडाली सूनी रही रिक्त तू खोज न सका कमल निर्झर
nविज्ञ न था निकटतम धुरी यह तेरी ही मधुर सुरभि
nटेर रहा निज सौरभप्राणा मुरली तेरा मुरलीधर ॥२५१॥
n
nहा धिक बीत रहा तट पर ही मन्द समय तेरा मधुकर
nतू बैठा सिर लादे मुरझा तृण तरु दल डेरा निर्झर
nक्या शून्यता निहार रहा जो हटा पन्थ हारा हर
nटेर रहा आन्नदावर्ता मुरली तेरा मुरलीधर॥२५२॥
n (more…)मौन बैठे हो क्यों मेरे अशरण शरण..
nnमौन बैठे हो क्यो मेरे अशरण शरण।
nइस अभागे को क्या मिल सकेगा नहीं,
nहे कृपामय तेरा कमल-कोमल-चरण।
nमौन बैठे हो क्यो मेरे अशरण शरण।
n (more…)हे देव तेरा गुणगान मेरे..
nnnदिनचर्या तेरी मेरी सेवा हो
nकुछ ऐसी कमाई हो जाये।
nहे देव तेरा गुणगान मेरे
nजीवन की पढ़ाई हो जाये।।
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nयह जग छलनामय क्षण भंगुर
nखिल कर झड़ जाते फूल यहाँ।
nअनूकूल स्वजन भी दुर्दिन में
nहो जाते हैं प्रतिकूल यहाँ।
nमेरे जीवन का सब कर्ता-धर्ता
nसच्चा साँई हो जाये-
nहे देव तेरा गुणगान 0……………………………।।1।।
n (more…)मुरली तेरा मुरलीधर 46
nसहनशील रजकण प्रशान्त बन प्रभुपथ में बिछ जा मधुकर
nकिसी भाँति उसके पदतल मे ललक लिपट लटपट निर्झर
nप्राणकुंज के सुमन में सुन उसकी मनहर बोली
nटेर रहा अर्पणानुभावा मुरली तेरा मुरलीधर ॥२४६॥
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nहो न रही मारुत सिहरन की क्या अनुभूति तुम्हें मधुकर
nक्या न सुन रहे दूर तरंगित राग रागिनी स्वर निर्झर
nबहा जा रहा है प्रियतम स्वर छूता अपर कूल पंकिल
nटेर रहा है अनुरक्तिअन्तरा मुरली तेरा मुरलीधर॥२४७॥
n (more…)मुरली तेरा मुरलीधर 45
nnनिज प्रियतम के विशद विश्व में और न कुछ करना मधुकर
nनिरुद्देश्य उसके गीतों को झंकृत कर देना निर्झर
nपंकिल भर देना निज कोना बहा गीतधारा प्रभुमय
nटेर रहा अर्चनोद्वेलिता मुरली तेरा मुरलीधर।२४१।
n
nजग उत्सव मे प्राणनाथ का मिला निमन्त्रण है मधुकर
nआशीर्वादित हुये प्राण दृग देखे सुने श्रवण निर्झर
nभीतर पहुच अतंद्र देख ले प्राणेश्वर मुखचन्द्र विमल
nटेर रहा आमंत्रणस्वरिता मुरली तेरा मुरलीधर।२४२।
n (more…)मुरली तेरा मुरलीधर 44
गाने आया जो अनगाया गीत अभी तक वह मधुकर
nवीण खोलते कसते ही सब बासर बीत गये निर्झर
nसही समय आया न सज सके उचित शब्दसंभार कभी
nटेर रहा समयानुकूलिनी मुरली तेरा मुरलीधर।२३६।
n
nमारुत रोता रहा खिले पर गहगह फूल नहीं मधुकर
nइच्छाओं की पीडा का ही था उरभार गहन निर्झर
nगृह समीपवर्ती पथ से ही गया निकल मंथर प्रियतम
nटेर रहा अमन्दपदध्वनिता मुरली तेरा मुरलीधर।२३७।
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nदेख न सका बदन उसका स्वर सुन न सका उसका मधुकर
nभवन पंथ पर मन्द चरण ध्वनि ही सुन सके श्रवण निर्झर
nसेज बिछाती बीती रजनी बुला न सके सदन मे तुम
nटेर रहा है मिलनमानसी मुरली तेरा मुरलीधर।२३८।
n
nअमित वासनायें है तेरी तेरे अमित रुदन मधुकर
nबार बार वह कृपा सिन्धु करता न उन्हें स्वीकृत निर्झर
nदे यह शुचि उपहार बनाता अपने लायक नित्य तुम्हें
nटेर रहा है स्वजनाश्रयिणी मुरली तेरा मुरलीधर।२३९।
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nयह दिन दिया दिया यह द्युति दी ऐसी शुभकाया मधुकर
nपर जब तुच्छ वासनाओं से हुआ मुकुर मैला निर्झर
nवह ओझल हो गया बनाता पूर्ण स्वीकरण योग्य तुम्हें
nटेर रहा निजदिशादशिर्नी मुरली तेरा मुरलीधर।२४०।
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nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
n# मुझे प्रेम करने दो केवल मुझे प्रेम करने दो (सच्चा शरणम )मुरली तेरा मुरलीधर – 43
भू लुण्ठित हो धूलिस्नात हो जाय न जब तक तन मधुकर।
nवह निज कर में ले दुलराये तेरा लघुप्रसून निर्झर
nविलख भले सुरभित न किन्तु वह पदसेवा से करे न च्युत
nटेर रहा सेवासुखोदग्मा मुरली तेरा मुरलीधर।२३१।
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nआभूषण क्या प्रिय संगम रोधक प्राचीर नहीं मधुकर
nहो सकती है एकमेव फिर युगल शरीर नहीं निर्झर
nसहज सरल अनलकृंत जीवनगीत बाँसुरी मे भर भर
nटेर रहा है सहजस्पन्दिनी मुरली तेरा मुरलीधर।२३२।
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nनिज को निज कन्धे बैठाये अज्ञ दुखारी तू मधुकर
nउसे क्यो न सौंपता विहँस जो अखिल भारहारी निर्झर
nतेरी इच्छा का श्वाँसानिल देता दीपक ज्योति बुझा
nटेर रहा अस्तित्वअर्पिता मुरली तेरा मुरलीधर ।२३३।
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nवहीं प्राणधन का सिंहासन वहीं चरण संस्थित मधुकर
nजहाँ पतिततम महादीनतम अविदित जन संस्थित निर्झर
nओझल किये उसे गहरे मे दंभगर्भिणी मोह निशा
nटेर रहा है दंभतमघ्नी मुरली तेरा मुरलीधर ।२३४।
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nतब तक भटकेंगे दृग तेरे बहिर्जगतगति में मधुकर
nजब तक बोधा नहीं अतन्द्रित बन्द किये लोचन निर्झर
nआंसू जल मे बह जायेगा पंथ बहिर्गामी पंकिल
nटेर रहा अस्मिताविलीना मुरली तेरा मुरलीधर ।२३५। ————————————————————-
nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
n# फागुन मतवारो यह ऐसो परपंच रच्यौ.. (सच्चा शरणम)