nकिसी भाँति उसके पदतल मे ललक लिपट लटपट निर्झर
nप्राणकुंज के सुमन में सुन उसकी मनहर बोली
nटेर रहा अर्पणानुभावा मुरली तेरा मुरलीधर ॥२४६॥
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nहो न रही मारुत सिहरन की क्या अनुभूति तुम्हें मधुकर
nक्या न सुन रहे दूर तरंगित राग रागिनी स्वर निर्झर
nबहा जा रहा है प्रियतम स्वर छूता अपर कूल पंकिल
nटेर रहा है अनुरक्तिअन्तरा मुरली तेरा मुरलीधर॥२४७॥
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nनिशिवत मौन दबे पद चुपके बन्धन तोड़ तेरा मधुकर
nशून्यगली मे इतस्ततः घुमता सुहृद तेरा निर्झर
nनिकल न जाय स्वप्नसम चुपके दबे चरण रख खुला निलय
nटेर रहा है मुक्त कपाटा मुरली तेरा मुरलीधर॥२४८॥
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nकरो विनय जब राही की सब शक्ति छीज जाये मधुकर
nयात्री मे दीनता लाज की चीज नहीं आये निर्झर
nनिज रजनी की करुणा से सींच दे पुनः नवल जीवन
nटेर रहा यात्रापाथेया मुरली तेरा मुरलीधर ॥२४९॥
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nव्यक्ति दिवस दृग पर रख पंकिल रजनी अवगुण्ठन मधुकर
nऔर कौन वह ही तो लेता हर वासर पीड़ा निर्झर
nविश्वासी मन बन प्रिय की गोदी मे कर निर्द्वंद्व शयन
nटेर रहा है द्वंद्वविरामा मुरली तेरा मुरलीधर ॥२५०॥
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nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
n# इस थकानमय निशि में प्रिय (गीतांजलि का भावानुवाद ) : सच्चा शरणम
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