सुधि उमड़ती रहे बदलियों की तरह …

सुधि उमड़ती रहे बदलियों की तरह    ।
nतुम झलकते रहो बिजलियों की तरह ॥
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nप्रभु हृदय में मेरे तुमको होगी घुटन
nमैने गंदा किया सारा वातावरण 
nऐसे हिय में बिरह की सलाई लगा
nप्राण सुलगें अगरबत्तियों की तरह     ||1||
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nदृष्टि बस फेर दो कष्ट कट जायेगा
nकुछ तेरा सच्चे बाबा न घट जायेगा
nउर की क्यारी में भगवन खिलो बन सुमन
nमन मचलने लगे तितलियों की तरह ||2||
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nमैं हूँ दुनिया का सबसे बुरा आदमी
nबोझ ढ़ोने में यदि चाहते हो कमी
nमेरा अपराध-तरु झोर दो झर पड़ें
nपाप सूखी हुई पत्तियों की तरह        ||3||
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nतेरी सुधि से बिलग मत रहे एक क्षण
nमेरी हर श्वांस, हर रोम, हर रक्त-कण
nअपनी चुटकी का बल आप देते रहें
nमै थिरकता रहूँ तकलियों की तरह  ||4||
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nसोचते कौन तुम मेरी नेकी – बदी
nताल ‘पंकिल’ हूँ मैं तुम हो गंगा नदी
nप्रेम चारा चुँगाते चलो चाव से
nमैं निगलता चलूँ मछलियों की तरह  ||5||
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photo source : wikimedia
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nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ – 
n# शायद आज मैं मिलूँगा तुमसे ...  (सच्चा शरणम )
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