मौन बैठे हो क्यों मेरे अशरण शरण..

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nमौन बैठे हो क्यो मेरे अशरण शरण।
nइस अभागे को क्या मिल सकेगा नहीं,
nहे कृपामय तेरा कमल-कोमल-चरण।
nमौन बैठे हो क्यो मेरे अशरण शरण।
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nक्या मेरे इस गिरे हाल में ही हो खुश
nतुमको भाता हमारा हरामीपना।
nक्या मेरी दुर्दशा से ही हर्षित हो प्रभु
nतो सुनो अपनी पूरी करो कामना।
nतेरी इच्छा में ही मेरा मंगल महा
nजैसे चाहो रखो जन को तारण-तरण-
nमौन बैठे हो क्यो मेरे अशरण शरण।।1।।
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nमुझमें अवगुण अनकों भरे सच्चे प्रभु
nकोई अब नोंचता कोई तब नोंचता।
nइस निरालम्ब अज्ञान-रत नीच को
nअब सम्हालो दयामय बहुत हो चुका।
nदेखते-देखते तेरे इस पुत्र का
nनित बिगड़ता चला जा रहा आचरण-
nमौन बैठे हो क्यो मेरे आशरण शरण।।2।।
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nदुर्गुणों को मिटाने का सुनता नियम
nआचरण पर कोई मुझसे बनता नहीं।
nकोटि कल्मष-कलुष से भरा है हृदय,
nउर में अनुराग-सागर उफनता नहीं।
nहे दयाधाम मेरी मिटा दो कमीं
nकौन है आप से सोच-संशय-शमन-
nमौन बैठे हो क्यो मेरे अशरण शरण।।3।।
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nऔर कुछ दो न दो अपनी सुधि सौंप दो
nमुझ भिखारी का भगवन यही परम धन।
nमैं हूँ स्वामी तुम्हारे ही अधिकार में
nकर लो स्वीकार प्रभु मेरा ‘पंकिल’ सुमन
nयदि जिऊँ तो तेरा नाम ले ले जिऊँ
nमुत्यु-क्षण में भी हो नाम तेरा स्मरण-
nमौन बैठे हो क्यो मेरे अशरण शरण।।4।।

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