मुरली तेरा मुरलीधर 41


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तुम गुरु स्वयं शिष्य मन तेरा प्रथम सुधारो मन मधुकर
nजग सुधार कामना मत्त मत जग में करो गमन निर्झर ।
nकरता विरत कृष्ण-चिन्तन से जगत राग द्वेषादि ग्रसित
nटेर रहा है मनसंयमिनी मुरली तेरा मुरलीधर ॥ २२१॥
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nस्वयं कृपालु बनो मन पर दो उसे प्रबोधन स्वर मधुकर
nप्यारे अब बनना न किसी का प्रियतम प्रिया तनय निर्झर।
nअपनी पूरी शक्ति लगा दो बना उसे हरि चरण भ्रमर
nटेर रहा है मनस्तोषिणी मुरली तेरा मुरलीधर ॥ २२२॥
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nसमय न गंवा व्यर्थ  चिन्तन में अन्तस्तल में जग मधुकर
nमुट्ठी में बाँधता लहर की झाग अज्ञ फेनिल निर्झर ।
nसागर की गहराई में हीरे हैं रहा टटोल कहाँ
nटेर रहा अस्तित्वबोधिनी मुरली तेरा मुरलीधर ॥ २२३॥
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nतुम्हें अनंत कर दिया उसने ऐसा सुखदाता मधुकर
nपुनः पुनः कर रिक्त पुनः नव जीवन भर जाता निर्झर ।
nतेरी लघु वंशी से घाटी-घाटी गाता गीत नवल
nटेर रहा अनवरत सहचरी मुरली तेरा मुरलीधर ॥ २२४॥
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nआती भेंट उतर अनंत की तेरे लघुकर में मधुकर
nअमृत स्पर्श उसके हाथों का रचता हर्श सिन्धु निर्झर ।
nयुग बीतते उड़ेल रहा भरने को फिर भी शेष सदन
nटेर रहा अक्षयसुखकोषा मुरली तेरा मुरलीधर ॥ २२५॥
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nचित्र साभार : http://radhemohan.blogspot.com
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nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ-
n# करुणावतार बुद्ध-9 ….(सच्चा शरणम)

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