मुरली तेरा मुरलीधर 5

प्राणेश्वर के संग संग ही कुंज कुंज वन वन मधुकर
डोल डोल हरि रंग घोल अनमोल बना ले मन निर्झर
शेश सभी मूर्तियाँ त्याग सच्चे प्रियतम के पकड़ चरण
टेर रहा है सर्वशोभना मुरली तेरा मुरलीधर।।36।।

छवि सौन्दर्य सुहृदता सुख का सदन वही सच्चा मधुकर
कर्म भोग दुख स्वयं झेल लो हों न व्यथित प्रियतम निर्झर
तुम आनन्द विभोर करो नित प्रभु सुख सरि में अवगाहन
टेर रहा है प्राणपोषिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।37।।

ललित प्राणवल्लभ की कोमल गोद मोदप्रद है मधुकर
प्रियतम की मृणाल बाँहें ही सुख सौभाग्य सेज निर्झर
प्रेम अवनि वह पवन प्रेम जल प्रेम वह्नि गिरि नभ सागर
टेर रहा है प्रेमाकारा मुरली तेरा मुरलीधर।।38।।

डूब कृष्ण स्मृति रस में मानस मधुर कृष्णमय कर मधुकर
बहने दे उर कृष्ण अवनि पर कल कल कृष्ण कृष्ण निर्झर
सब उसका ही असन आभरण शयन जागरण हास रुदन
टेर रहा है सर्वातिचेतना मुरली तेरा मुरलीधर।।39।।

हृदय कुंज में परम प्रेममय निर्मित अम्बर मधुकर
उसी परिधि में विहर तरंगित सर्वशिरोमणि रस निर्झर
इस अम्बर से भी विशाल वह प्रेमाम्बर देने वाला
टेर रहा है विश्ववंदिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।40।।
——————————————————-
आपकी टिप्पणी से प्रमुदित रहूँगा कृपया टिप्पणी करने के लिये यहाँ अथवा प्रविष्टि के शीर्षक पर क्लिक करें साभार

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *