nनिज प्रियतम के विशद विश्व में और न कुछ करना मधुकर
nनिरुद्देश्य उसके गीतों को झंकृत कर देना निर्झर
nपंकिल भर देना निज कोना बहा गीतधारा प्रभुमय
nटेर रहा अर्चनोद्वेलिता मुरली तेरा मुरलीधर।२४१।
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nजग उत्सव मे प्राणनाथ का मिला निमन्त्रण है मधुकर
nआशीर्वादित हुये प्राण दृग देखे सुने श्रवण निर्झर
nभीतर पहुच अतंद्र देख ले प्राणेश्वर मुखचन्द्र विमल
nटेर रहा आमंत्रणस्वरिता मुरली तेरा मुरलीधर।२४२।
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nइसीलिये इतना विलम्ब है भूल चूक पंकिल मधुकर
nसबने अपने दृढ़ नियमों मे तुमको बाध रखा निर्झर
nफेर फेरनेवालों से मुख उसके पद पर रख दे सिर
nटेर रहा है पथप्रतीक्षिता मुरली तेरा मुरलीधर।२४३।
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nग्रीष्म शरद वासर वासन्ती कितने गये बीत मधुकर
nयह न तिमिरमय निशा पावसी जाये व्यर्थ रीत निर्झर
nबहिर्द्वार पर बैठ अकेले कर न प्रतीक्षा अब पंकिल
nटेर रहा प्रियमिलनपावसी मुरली तेरा मुरलीधर।२४४।
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nयदि न बोलते प्रिय तो उनका गहन मौन ले भर मधुकर
nशान्त निशा सा नत शिर कोने खडा प्रतीक्षा कर निर्झर
nचरणन्यास द्रुत उषा करेगी खोल असशय तिमिर पटल
nटेर रहा है धैर्यत्रिपथगा मुरली तेरा मुरलीधर ।२४५।
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nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
n# तुमने चुपके से मुझे बुलाया.. (सच्चा शरणम )
मुरली तेरा मुरलीधर 45
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