चिर विछोह की अंतहीन तिमिरावृत रजनी में मधुकर,
nफिरा बहुत बावरे अभीं भी अंतर्मंथन कर निर्झर
nसुन रुनझुन जागृति का नूपुर खनकाता वह महापुरुष
nटेर रहा है अनहदनादा मुरली तेरा मुरलीधर।।191।।
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nपी उसकी स्मिति सुधा प्रफुल्लित दिगदिगन्त अम्बर मधुकर
nविहॅंसित वन तृण पर्ण धवलतम तुहिन हिमानी कण निर्झर
nमधुर मदिर प्राणेश हॅंसी में डूब डूब उतराता चल
nटेर रहा है प्रीतिपंखिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।192।।
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nउमड़ घुमड़ घन मोहन का संदेशा ले आये मधुकर
nइधर तुम्हें रोमांच उधर वे भी पुलके होंगे निर्झर
nवे भींगे होंगे आये हैं तुम्हें भींगाने को बादल
nटेर रहा है मेघरागिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।193।।
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nतेरा जीवन गेंद गोद ले रखे गिरा दे या मधुकर
nमृदु कर से सहलाये अथवा चरण ताड़ना दे निर्झर
nतू उसका है जैसे चाहे तुमसे खेले खिलवाड़ी
nटेर रहा है मुक्तमानसा मुरली तेरा मुरलीधर।।194।।
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nकितनी करुणा है उसकी कल्पना न कर सकता मधुकर
nजितना डूबेगा उतना ही आनन्दित होगा निर्झर
nउसका दण्ड विधान कोप भी सदा अनुग्रह मय सुखमय
nटेर रहा है त्रिवर्गफलदात्री मुरली तेरा मुरलीधर।।195।।
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nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
n# पराजितों का उत्सव : एक आदिम संदर्भ-२ (सच्चा शरणम )
मुरली तेरा मुरलीधर 35
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