मुरली तेरा मुरलीधर 34

सुन अनजान प्राणतट का मोहाकुल आवाहन मधुकर
nरस सागर की तड़प भरी सब चाहें ममतायें निर्झर
nस्मरण कराता जन्म जन्म के लिये दिये अनगिन चुम्बन
nटेर रहा है प्रीतिमादिनी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।186।।
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nमृदु गलबहियाँ दे बन जाता हार तुम्हारा वह मधुकर
nसब अनखिला खिला देता है उसका मधु दुलार निर्झर
nउसकी बाँहों की डाली में रसमय झूला झूल नवल
nटेर रहा ऋतुराजनियोगा मुरली   तेरा    मुरलीधर।।187।।
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nउसका ही विहार वृन्दावन कर अपना अंतर मधुकर
nनयनों में प्राणेश मिलन का भर ले सजल सरस निर्झर
nतू क्या जाने निपट अनाड़ी कब रच दे कैसी लीला
nटेर रहा है चित्तचोरिनी मुरली   तेरा    मुरलीधर।।188।।
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nरख स्मृति वही प्राणवल्लभ सिन्दूर रेख तेरी मधुकर
nवह भावना चित्रलेखा वह कुंकुम भाल तिलक निर्झर
nदूर नहीं प्रति श्वांस श्वांस में वह मंगलमय मनमोहन
nटेर रहा जीवनश्रृंगारा मुरली   तेरा    मुरलीधर।।189।।
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nभग्न पाल अनभिज्ञ खेवैया जीवन जीर्ण तरी मधुकर
nक्षुभित जलधि प्रतिकूल प्रभंजन फिर भी चलता चल निर्झर
nउसका है तो फिर क्या चिन्ता आयेगा खेनेवाला
nटेर रहा है संकटहरणी  मुरली   तेरा    मुरलीधर।।190।।
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nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
n# करुणावतार बुद्ध – 3 (सच्चा शरणम )

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