बिक जा बिन माँगे मन चाहा मोल चुका देता मधुकर
nजगत छोड़ देता वह आ जीवन नैया खेता निर्झर
nकठिन कुसमय शमित कर तेरा आ खटकाता दरवाजा
nटेर रहा है प्रीतिपीठिका मुरली तेरा मुरलीधर।।176।।
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nरहे न तुम वह था न रहोगे तब भी वह होगा मधुकर
nटेर रहा तेरे अंचल की छाया में लुक छिप निर्झर
nभींगी पलकें पोंछ तुम्हें ले अंक भाल सहला सहला
nटेर रहा है प्रीतिमेदिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।177।।
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nक्या होती है थकित चकोरी पी पी चन्द्र किरण मधुकर
nकहाँ पी कहाँ रटते थकते चातक के न अधर निर्झर
nरहो पंथ में आँख बिछाये प्रिया गमन के दिन गिनते
nटेर रहा है प्रीतिचातकी मुरली तेरा मुरलीधर।।178।।
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nपश्चातापी नयन सलिल दिन रात बहाता रह मधुकर
nबिलख हाय मिल सका न प्रिय का मिलन महोत्सव रस निर्झर
nअनायास ही अनुकंपा से आ जायेगा वह नटवर
nटेर रहा है प्रीतिभामिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।179।।
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nजब प्रयाणरत प्राणों की होगी कम्पित बाती मधुकर
nशोकाकुल आँगन बिरवा की सूखेगी छाती निर्झर
nतुम्हें अंक में ले रच देगा माथे पर सौभाग्य तिलक
nटेर रहा है प्रीतिमंजरी मुरली तेरा मुरलीधर।।180।।
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nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
n# करुणावतार बुद्ध (सच्चा शरणम )
मुरली तेरा मुरलीधर 33
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