अपनी ही विरचित कारा में बंधा तड़पता तू मधुकर
nअपनी ही वासना लहर से पंकिल किया प्राण निर्झर
nउस प्रिय की कर पीड़ा हरणी चरण कमल की सुखद शरण
nटेर रहा है प्रीतिपंकिला मुरली तेरा मुरलीधर।।101।।
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nगीत वही तेरे अधरों पर स्वर उसका ही है मधुकर
nनयन तुम्हारे हैं जो उनकी ज्योति वही पुतली निर्झर
nभर आये दृग की भाशा का वह पढ़ पढ़ संवादी स्वर
nटेर रहा है मर्मभेदिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।102।।
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nअधरों पर मुस्कान सजा भर नयनों में पानी मधुकर
nअपने प्राणों के राजा को भेंज प्रेम पाती निर्झर
nगीत अधर पर सुधि सिरहाने रोम रोम में भर सिहरन
nटेर रहा है प्रीतिविह्वला मुरली तेरा मुरलीधर।।103।।
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nकहाॅं भाग कर जायेगा प्राणेश वाटिका से मधुकर
nतुम्हें मिलेगा गीत सुनाता नित नित नवल नवल निर्झर
nशरद शिशिर हेमन्त वसन्ती ऋतु रवि शशि में हो द्युतिमय
nटेर रहा है विराटवपुशीला मुरली तेरा मुरलीधर।।104।।
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nउसके सरसिज पद परिमल से निज सिर पंकिल कर मधुकर
nक्या पाया उसको न सोच क्या खोया यही देख निर्झर
nरिक्त बनोगे तो पाओगे प्रियतम प्राण रसाकर्शण
nटेर रहा है निरहंकारा मुरली तेरा मुरलीधर।।105।।
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nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
n# कैसे ठहरेगा प्रेम जन्म-मृत्यु को लाँघ …. (सच्चा शरणम)
मुरली तेरा मुरलीधर 18
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