वह इच्छुक है सुनने को तेरे गीतों का स्वर मधुकर
nआ आ मुख निहार जाता है नीर नयन में भर निर्झर
nसरस तरंगित उर कर अपना बाँट रहा आनन्द विभव
nटेर रहा सुख गीत गुंजिता मुरली तेरा मुरलीधर ॥२२६॥
n
nसुन वह कैसे गाता तूँ विस्मय विमुग्ध सुन-सुन मधुकर
nइस नभ से उस नभ तक करता आलोकित वह स्वर निर्झर
nउसके स्वर में स्वर संयुत कर विह्वल गायन हेतु मचल
nटेर रहा रस भाव विमुग्धा मुरली तेरा मुरलीधर ॥२२७॥
n
nधूल बीच निज अन्तर के सारे दुर्भाव मिला मधुकर
nनिज उर में प्राणेश प्रीति का विमल प्रसून खिला निर्झर
nक्या न पता तेरे अंगों पर प्रियतम का जीवित स्पंदन
nटेर रहा है प्राणस्पर्शिनी मुरली तेरा मुरलीधर ॥२२८॥
n
nनिज चिन्तन से सब असत्य का कर दे उन्मूलन मधुकर
nवह तो सत्य वही है जिससे ज्योतित उर चिन्तन निर्झर
nपाणि अपावन कर सकते कैसे पावन पद प्रच्छालन
nटेर रहा नख-शिखा पावनी मुरली तेरा मुरलीधर ॥२२९॥
n
nक्या अछोर कर्म सागर में श्रम कर कर हारा मधुकर
nस्वेदसिक्त श्लथ सुखी हो सका नहीं बिचारा मन निर्झर
nहो समीप स्थित शांति सदन प्रिय निर्निमेष मुख-चन्द्र निरख
nटेर रहा दर्शनानुरक्ता मुरली तेरा मुरलीधर ॥२३०॥
n
n————————————————–
nअन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
n# आया है प्रिय ऋतुराज … (सच्चा शरणम )
मुरली तेरा मुरलीधर – 42
Published:
By
Categorized in:
Last Updated:
Share Article:
Leave a Reply