रम्यांतर के पंकिल पृष्ठ पर आपका स्वागत है। कवि, लेखक, समीक्षक, नाटककार, निबंधकार एवं अनुवादक 'पंकिल' की साहित्यिक, दार्शनिक, आध्यात्मिक एवं स्वान्तःसुखीन रचनाओं का सहज प्रकाशन है यहाँ। लोकभाषा भोजपुरी में लिपटी साहित्य की अनेकों विधायें भीं ठुमकती मिलेंगी। यह जालस्थल यत्र-तत्र प्रकाशित रचनाओं व पुस्तकों को भी एकत्र करने का प्रयास है।
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These songs are the heart-felt overflow of spiritual inspirations. The different Lilas of God incarnated (Sagun Brahma) has been depicted and enjoyed with the core of the heart for personal enthusiasm. God has been taken into arm, into heart, on head and in every sphere of life. Shri Krishna, Shri Ram, The Goddess Kali and Durga have come into lovely chantation in local language Bhojpuri. The songs have different rhythms and tones that can be sung with full throated ease at every action with devotion. Prayers and submission for the lovely one has been fully taken into alarm.
भावाम्बुद अन्तः की सोपान-सरणि है जो भक्ति की उस असीम गहराई को नापने का प्रयास करती है जिसे सहृदय जन भगवद्भक्ति संज्ञा से विभूषित करते हैं। भक्ति साहित्य के संस्कृत ग्रंथों के अतिरिक्त अन्यत्र इसकी सुरभि कम बिखरी दिखती है। नारद भक्ति सूत्र अपने आप में ’परम प्रेमरूपा’ अनिर्वचनीया और सा तु पराभक्तिरीश्वरे का अनुपम सुधा-स्वादमय थाल परोसती है। नारद भक्ति सूत्र और उसी प्रकार शांडिल्य भक्ति सूत्र परमात्म भक्ति विवेचन के दो नेत्र हैं। इनकी अतल गहराई में डूबने वाला अनायास ही परिवर्तन की एक मधुमयी धारा में बह जाता है। आचार्यों ने इसका सैद्धान्तिक विवेचन किया है, प्राज्ञों ने इसका मौलिक शील निरूपण किया है उसी प्रकार भावुकों ने इसका रसास्वादन रसमालयं के रूप में प्राप्त किया है। अर्वाचीन चिन्तक, स्वयं में एक अनमोल रत्न, एक अद्भुत भाव प्रवण हीरा के रूप में आचार्य श्री रजनीश ’ओशो’ ने इसकी बड़ी ही मार्मिक विवेचना प्रस्तुत की है। यह इतनी सुगम है, सुस्वादु है और सुलभ है कि इसे छोड़ते नहीं बनता। भक्ति भावाम्बुद इसी ओशो की विचारधारा का काव्यात्मक परिमण्डन है। न शब्दशः व्याख्या है, न अर्थगत ऊहापोह है, न वाक् सिद्धि का द्रविण प्राणायाम है, न प्रदर्शन की संगति है। यहाँ सब सहजोच्छ्वास है। लगता है स्वयं नारद ही एवं शांडिल्य ही जो कहना चाहते हैं वो कह रहे हैं। यही विवेचन, यही भावरस, यही सरल सुगम हृदयस्पर्शिता इस रचना में स्वांतःसुखाय प्रस्तुत है।
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“Shailbala Shatak” is a profound poetic work that invites readers into the mystical world of Shailbala, a figure whose name resonates with the grace and strength of the mountains. This collection of one hundred verses, or ‘shatak,’ explores themes of nature, spirituality, and the human condition, weaving a rich tapestry of lyrical beauty and philosophical depth.
This stuti kavya is not just a literary work but a medium of meditation and devotion. As you delve into these verses, you will find yourself immersed in the sanctity and power of the divine feminine. The words are imbued with the blessings of Shailbala, guiding the readers towards a path of devotion and spiritual fulfillment.
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Bavariya Barsane Vali is the poetical picturization of the symbol that is inherent in the perpetual, eternal and divine love of Shri Radha Madhav. Radha incidentally feeling separated and detached from her ‘Priyatam Shri Krishna’ is greatly drowned in grief. Her moments that were experienced in love with her Priyatam Shri Krishna now rotate vehemently in her mind when the rainy season, the month of Asharh starts the entire Brijmandal is in the clasp of this rain wound cloudy vigour. Radhika runs as a lunatic here and there in Vrindavan recalling all the fragrant love moments that were her partner with Shri Krishna in Vrindavan. She recalls how she play with him, what she talked with him, how she got wet in the rain, what were the promises and assurance revealed by her lover and now she is empty of the treasure that she got accumulated with Shri Krishna
वचनं मधुरम् संत शिरोमणि, युग परिवर्तक श्री सच्चा बाबा महाराज की वाणियों के काव्यमय भावानुवाद की शृंखला की दूसरी कड़ी है। संत श्री सच्चा बाबा ’श्री सच्चा आश्रम, अरैल, प्रयाग में गंगा यमुना संगम के पास रहते थे। उनकी वाणियाँ स्वयं में वेद-ऋचाओं से अर्थ-गर्भी तत्त्व परिनिष्ठ और नयनोन्मीलक हैं। आप समय के द्रष्टा और क्रांतिकारी परिवर्तक संत हैं। उनकी वाणियों का यह विश्लेषण समय-समय पर जैसे वसंत पंचमी जिसे वे परिवर्तन की तिथि कहते थे, शिवरात्रि जिसे वे स्वात्मावबोध की तिथि कहते थे, गुरुपूर्णिमा जिसे वे आत्मानुशीलन की तिथि कहते थे और कृष्ण जन्माष्टमी जिसे वे भगवतावतरण की तिथि कहते थे, पर दिए गए प्रवचनों का सार संक्षेप है। राम नवमी, चैतन्य जन्मोत्सव, यज्ञायोजन एवं भारतीय तत्त्वान्वेषी विद्यार्थियों के बीच भी उनके प्रबोधनों ने अमृत तुल्य कार्य किया है। यह वचनं मधुरम् काव्य रचना उन्हीं तत्त्वदर्शी ऋषि की वाणियों का आलोड़न एवं अनुशीलन है जो नितान्त स्वांतः सुखाय है और इसका प्रकाशन परोपकाराय ही उद्घाटित हुआ है।
सीचौं न औढरदानि परानि बिलोचन पानी सों प्रेम को पौधा पाप पयोनिधि पैरत थाक्यों पगे न जुरी पनहीं चमरौधा पंकिल आस पियासन धाइ पर्यौ लटुआइ रह्यौ चकचौंधा माई दुआरे परी अरजी कलपद्रुम होइहैं कबौं कुकुरौंधा
आन्हर में कनवाँ नृप ह्वै जगदम्ब रजाई की बाँधे हौं गाँती डोलत काँपौं टटोलत मारग बोलत में नटई सहराती अइसो अघी तुम ते कछु चाहत बाजै सुराग कि गाँडर ताँती हौ जिय माँहि भरोसा इहै नाहि माई क होइहैं कसाई सी छाती
पूरनमासी के मंजु मयंक सी आनन की जेहि के सुघराई नैननि कज्जल रेख सुधा अधरान पै हीरक हास सुहाई सोभत सिन्दुर कुंकुम भाल कपोलन ते छलकै अरुनाई कामिनि कामविनासिनि की पिय कि संग मोरे हिये बसु माई
शैलबाला शतक के छन्द भोजपुरी भाषा के इच्छुरस का सोंधा पाक हैं।
भोजपुरी भाषा में जगतजननी माँ शैलबाला का स्तवन-वन्दन-आत्मनिवेदन और समर्पण है यह रचना। कहीं कोई बनावट नहीं, कोई सजावट नहीं, कोई दिखावट नहीं, बस अपनी माई के चरणों में सहज प्रणति के छन्द हैं यह। शैलबाला शतक के छन्द पराम्बा के चरणों में अर्पित स्तवक हैं। इस रचना में भोजपुरी की लोच में, नमनीयता में सहज ही ओज-प्रासाद गुम्फित हो गया है। लोकभाषा की ’लोकवन्द्य’ शक्ति का परिचय देते हैं यह छन्द।
पंकिल ने प्रेम लिखा, पंकिल ने ओज लिखा, पंकिल ने ईश्वर और प्रकृति के गीत गाए, पंकिल ने मानव मन की व्यथा को उकेरा। कहीं कोई दबाव नहीं, कहीं कोई झुकाव नहीं, कहीं कोई बहकाव नहीं। वह चितेरा है लोक का, वह चितेरा है मानव-मन का, वह चितेरा है निसर्ग का। जो कविता में कविताई के कायल होंगे वे पंकिल से बरजोरी मिताई करेंगे। और इस मिताई का साधन जुटाना ही इस शोध का उद्देश्य भी है और महत्व भी।
ये गीत कवि के एकांत के सहचर हैं और इनका गुनगुनाना अपरिचय का परिचित मनसायन काण्ड है। आनन्द लोक से गीतकीर्ति परम प्रियतम का बार-बार प्रणय निमंत्रण आता है। कोकिला की कूक कह जाती है- प्राणेश का निमंत्रण है। पपीहा की पी कहाँ बोली बार-बार विरह व्रण को छू छू जाती है और लरजते प्राणों की गुदगुदी बनकर पुकारने लगती है- प्राणेश का निमंत्रण है। बौरायी आम्र विटप की शाखाओं का मधु सौरभ नासा में प्रविष्ट होकर सिहरन पैदा करते हुए कह जाता है- प्राणेश का निमंत्रण है।
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