Pankil https://pankil.ramyantar.com A portal to publish literary, religious and philosophical works of Prem Narayan Pankil. Thu, 11 Apr 2024 13:55:09 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.2 https://pankil.ramyantar.com/wp-content/uploads/2024/03/cropped-Pankil-32x32.png Pankil https://pankil.ramyantar.com 32 32 तेरे चारों ओर वही कर रहा भ्रमण है (सच्चा लहरी-3) https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%b8%e0%a4%9a%e0%a5%8d%e0%a4%9a%e0%a4%be-%e0%a4%b2%e0%a4%b9%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%a4%e0%a5%80%e0%a4%a8/ https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%b8%e0%a4%9a%e0%a5%8d%e0%a4%9a%e0%a4%be-%e0%a4%b2%e0%a4%b9%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%a4%e0%a5%80%e0%a4%a8/#respond Tue, 26 Sep 2017 16:04:00 +0000
तेरे चारों ओर वही कर रहा भ्रमण है
खुले द्वार हों तो प्रविष्ट होता तत्क्षण है
उसकी बदली उमड़ घुमड़ रस बरसाती है
जन्म-जन्म की रीती झोली भर जाती है।
होना हो सो हो, वह चाहे जैसे खेले उसका मन,
दे सुला गोद में चाहे ले ले करो समर्पण
कुछ न कभीं भी उससे माँगो
बस उसके संकल्पों में ही सोओ जागो।
वही पाणि पद सिर में वही हृदय धड़कन में
शोणित में श्वासों में वाणी गमन शयन में
‘मैं’ हो गया विदा अब मेरा ईश उपस्थित
उसके महारास में कर दो श्वाँस समर्पित।
चाहे कोई भी स्वर हो कोई भी भाषा
सब उसकी है, उसे पता सबकी परिभाषा
’मैं उसका हूँ’ उर में यह अनुभूति बसा लो
अनुपम इस सच्चा वाणी का मर्म सम्हालो।
पुष्पवृन्द परिमल की जैसी गंध कथा है
किरणों का अरुणोदय से सम्बन्ध यथा है
तथा अश्रु की भाषा में बोलते नयन हैं
भाव प्रस्फुटन के आँसू चाक्षुषी वचन हैं।
पूर्ण अनिवर्च ईश प्रीति की पीर निराली
बरबस छलक छलक जाती नयनों की प्याली
विह्वल उर आह्लाद जन्य उमड़ता रुदन है
ढुलक गया प्रेमाश्रु पुण्य प्रार्थना सदन है।
सब कृतियों में तुम बेहोशी में खोये हो
सपना सभी अतीत कर्म में तुम सोये हो
माया सब जो किए जा रहे नादानी में
जागो व्यर्थ अनर्थ फेंक कूड़ेदानी में।
रोको मत बहने दो उसके आगे दृगजल
पंकिल लोचन जल से धुल होता मन निर्मल
तड़पन वाले को मनचाहा मिल जाता है
आँसू से उसका सिंहासन हिल जाता है।
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सच्चा कहता अरे बावरे! (सच्चा लहरी-2) https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%b8%e0%a4%9a%e0%a5%8d%e0%a4%9a%e0%a4%be-%e0%a4%b2%e0%a4%b9%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%a6%e0%a5%8b/ https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%b8%e0%a4%9a%e0%a5%8d%e0%a4%9a%e0%a4%be-%e0%a4%b2%e0%a4%b9%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%a6%e0%a5%8b/#respond Sat, 09 Mar 2013 15:25:00 +0000

सच्चा कहता अरे बावरे! द्वारे द्वारे
घूम रहा क्यों अपना भिक्षा पात्र पसारे।
बहुत चकित हूँ, प्रबल महामाया की  माया
किससे क्या माँगू, सबको भिक्षुक ही पाया॥९॥

सब धनवान भिखारी हैं, भिक्षुक नरेश हैं
कहाँ मालकीयत जब तक वासना शेष है।
माँग बनाती हमें भिखारी यही पहेली
नृप को भी देखा फैलाये खड़ा हथेली॥१०॥

माँगे मिल भी जाये तो रस घट जाता है
बिन माँगे पाने वाला गौरव पाता है।
माँग माँग कर यदि कोई कुछ पा भी जाता
तो देने वाला लाखों एहसान जताता॥११॥

सच्चा मन है नहीं माँग में किंचित रस हो
प्रभु से ही माँगो यदि करती माँग विवश हो।
भक्त बिना माँगे ही उससे सब पा जाता
प्रभु प्रसाद पर भी प्रसाद अपना बरसाता॥१२॥

यदि माँगा तो तुमने प्रभु का किया अनादर
उठते ही वासना रुकेंगे संवादी स्वर।
सेतु भंग हो गया मिटी ईश्वर से ममता
धन पद मान प्रतिष्ठा में ही है उत्सुकता॥१३॥

धन को प्रभु से बड़ा बना कर साध्य कर दिया
निज याचना पूर्ति हित प्रभु को बाध्य कर दिया।
तेरी सब प्रार्थना वासना का प्रक्षेपण
इसीलिए तो प्रभु-प्रसाद का रुकता वर्षण॥१४॥

सच्चा कहता है हम मंगन से क्या माँगे
बस प्रभु की मर्जी को ही रहने दें आगे।
नहीं धरा ही प्यासी जलधर भी आतुर है
जल वर्षण हित तरस रहा उसका भी उर है॥१५॥

जैसे ही तुम झुके ईश करुणा के जलधर
तुम्हें घेरकर स्नेह नीर बरसेंगे झर-झर।
प्रभु स्नेहिल कर सहलायेंगे पीठ तुम्हारी
सच्चा सींचेगा तेरी मुरझी फुलवारी॥१६॥

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सच्चा अद्वितीय अद्भुत है, उसको जी लो (सच्चा लहरी-1) https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%b8%e0%a4%9a%e0%a5%8d%e0%a4%9a%e0%a4%be-%e0%a4%b2%e0%a4%b9%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%8f%e0%a4%95/ https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%b8%e0%a4%9a%e0%a5%8d%e0%a4%9a%e0%a4%be-%e0%a4%b2%e0%a4%b9%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%8f%e0%a4%95/#respond Tue, 05 Mar 2013 11:46:00 +0000 संत बहुत हैं पर सच्चा अद्भुत फकीर है
गहन तिमिर में ज्योति किरण की वह लकीर है।
राका शशि वह मरु प्रदेश की पयस्विनी है
अति सुहावनी उसके गीतों की अवनी है॥१॥

सच्चा अद्वितीय अद्भुत है, उसको जी लो
बौद्धिक व्याख्या में न फँसो, उसको बस पी लो।
मदिरा उसकी चुस्की ले ले पियो न ऊबो
उस फकीर की मादकता मस्ती में डूबो॥२॥

तुम सच्चे की भाषा में ही उलझ न जाओ
श्रद्धा से उसके भावाम्बुधि बीच नहाओ।
राख नहीं वह, वह तो जलता अंगारा है
उसको तो अनुभूति गगन का रवि प्यारा है॥३॥

तुम उसकी पी आग स्वयं बन सकते ज्वाला।
एक घूँट भी जो पी ले होगा मतवाला।
यदि सच्चा के शब्दों से ही टकराओगे।
तो ऊपर का कूड़ा-कचरा ही पाओगे॥४॥

निज में उसके भावों को ही सज जाने दो।
झर झर झरें प्रसून बाँसुरी बज जाने दो।
उगें इन्द्रधनु जलें प्रदीप उदित हो दिनकर।
अन्तर में आनन्द बोध के फूटें निर्झर॥५॥

वह है एक निमंत्रण आवाहन पुकार है।
वह अभिनव नर्तन झंकृत उर वीण तार है।
व्याख्यारत पुस्तक पन्नों में ही मत मचलो।
वहाँ न कुछ मिल सकता, आगे बढ़ो, बढ़ चलो॥६॥

प्रभु विछोह की,परम प्रीति की, आत्मज्ञान की।
तुममें भी हो पीर कसक हो चुभे बाण की।
भोर बुलाये, गंधानिल मथ दे शरीर को।
पलकें ढुलका दें कपोल पर नयन नीर को॥७॥

लहरे स्वर पर स्वर गूँजे गुंजन पर गुंजन।
महामहोत्सव के मद में डूबे नख-शिख मन।
कुछ मधुमय मिल जाये तुम्हारे प्राण-कीर को
तभीं समझना कुछ समझा सच्चा फकीर को॥८॥

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जियरा जुड़इहैं रे सजनी (एक प्रिय-विमुक्ता का उच्छ्वास) https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%9c%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%b0%e0%a4%be-%e0%a4%9c%e0%a5%81%e0%a4%a1%e0%a4%bc%e0%a4%87%e0%a4%b9%e0%a5%88%e0%a4%82-%e0%a4%b0%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a4%9c%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%8f%e0%a4%95/ https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%9c%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%b0%e0%a4%be-%e0%a4%9c%e0%a5%81%e0%a4%a1%e0%a4%bc%e0%a4%87%e0%a4%b9%e0%a5%88%e0%a4%82-%e0%a4%b0%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a4%9c%e0%a4%a8%e0%a5%80-%e0%a4%8f%e0%a4%95/#respond Sun, 16 Dec 2012 00:00:00 +0000 पीसत जतवा जिनिगिया सिरइलीं
दियवा कै दीयै भर रहलैं रे सजनी।
मिरिगा जतन बिन बगिया उजरलैं
कागा बसमती ले परइलैं रे सजनी॥

सेमर चुँगनवाँ सुगन अझुरइलैं
रुइया अकासे उधिरइलीं रे सजनी।
साजत सेजियै भइल भिनुसहरा
निनियाँ सपन होइ गइलीं रे सजनी॥

अँगना-ओसरिया में डुहुरैं दुलुरुवा
अन बिन मुँह कुम्हिलइलैं रे सजनी।
सुधियो ना लिहलैं सजन निरमोहिया
अखियौ कै लोरवा सुखइलैं रे सजनी॥

बिरथा तूँ बिलखैलू धनि बउरहिया
पिया अँखपुतरी बनइहैं रे सजनी।
उनहीं की सुधिया में रहु धिया लटपट
पंकिल जियरा जुड़इहैं रे सजनी॥

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माझी रे! https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%9d%e0%a5%80-%e0%a4%b0%e0%a5%87/ https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%9d%e0%a5%80-%e0%a4%b0%e0%a5%87/#respond Fri, 14 Dec 2012 03:06:00 +0000 O Majhi Re O Majhi Re: Dipankar Das      
Source: Flickr

माझी रे! कौने जतन जैहौं पार।
जीरन नइया अबुध खेवइया
टूट गए पतवार-
माझी रे! कौने जतन जैहौं पार।

माझी रे! ढार न अँसुवन धार।
दरियादिल है ऊपर वाला
साहेब खेवनहार! माझी रे!
रामजी करीहैं बेड़ापार।
माझी रे! कौने जतन जैहौं पार।

बीच भँवर खाती हिंचकोले
झाँझरी नइया डगमग डोले
उलटी बहत बयार, माझी रे!
नइया फँसी मझधार।
माझी रे! कौने जतन जैहौं पार।

बन जा उसके पथ का राही
उहवाँ नाहीं, नाहीं नाहीं
जिसने अजामिल ऋषितिय तारी
तोहरो सुनिहैं पुकार, माझी रे!
पंकिल ना डुबिहैं बीचे धार।
माझी रे! कौने जतन जैहौं पार।

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आँखों से मन मत बिगड़े… https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%86%e0%a4%81%e0%a4%96%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%ae%e0%a4%a8-%e0%a4%ae%e0%a4%a4-%e0%a4%ac%e0%a4%bf%e0%a4%97%e0%a4%a1%e0%a4%bc%e0%a5%87/ https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%86%e0%a4%81%e0%a4%96%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%ae%e0%a4%a8-%e0%a4%ae%e0%a4%a4-%e0%a4%ac%e0%a4%bf%e0%a4%97%e0%a4%a1%e0%a4%bc%e0%a5%87/#respond Sun, 11 Nov 2012 14:54:00 +0000 अनासक्त सब सहो जगत के झंझट झगड़े

ऐसा यत्न करो आँखों से मन मत बिगड़े।
मौन साध नासाग्र दृष्टि रख नाम सम्हालो 
मन छोटा मत करो काम कल पर मत टालो।
उसे पुकारो उसे रात दिन का हिसाब दो 
महापुरुष को सर्व समर्पण की किताब दो।
रहो जागते दुरित दोष का गला दाब दो
पत्थर मार रहे उसके बदले गुलाब दो।
सर्जक बनो न रचना दुःखान्तक खराब दो
’पंकिल’ इस दुनिया को जीवन से जवाब दो।
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मुरली तेरा मुरलीधर 48 https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%a4%e0%a5%87%e0%a4%b0%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%b2%e0%a5%80%e0%a4%a7%e0%a4%b0-48/ https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%a4%e0%a5%87%e0%a4%b0%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%b2%e0%a5%80%e0%a4%a7%e0%a4%b0-48/#respond Sun, 19 Feb 2012 13:12:00 +0000

पट खटका खटका पीडा देती सन्देश तुम्हे मधुकर
बौरे निशितम मे भी तेरा जाग रहा प्रियतम निर्झर
प्रेममिलन हित बुला रहा है जाने कब से सुनो भला
टेर रहा सन्देशशिल्पिनी मुरली तेरा मुरलीधर॥२५६॥

अंह तुम्हारा ही तेरा प्रभु वन चल रहा साथ मधुकर
बन्दी हो उससे ही जिसका स्वयं किया सर्जन निर्झर
प्रभु न दीख पडते प्रतिदिन बीतते जा रहे नाच नचा
टेर रहा है अहं अलिप्ता मुरली तेरा मुरलीधर ॥२५७॥

कठिन बंधशर्ते जग में जो तुम्हें प्रेम करते मधुकर
किन्तु तुम्हारे प्राणेश्वर का  रखता मुक्त प्रेम निर्झर
ओझल रह बांधता नही वह उस दिशि बहता प्रेम स्वयं
टेर रहा है स्वयंस्वरुपा मुरली तेरा मुरलीधर॥२५८॥

गीत गवाये कितने उसने तुमसे छ्ल करके मधुकर
कितने खेल खिलाकर सुख के रुला अश्रु जल से निर्झर
हाथ लगा फ़िर हाथ न आया अब ले मांगचरण आश्रय
टेर रहा लीलाविहारिणी मुरली तेरा मुरलीधर ॥२५९॥

पकडे जाओ प्रेम करो से आश लगाये रह मधुकर
देर बहुत हो गयी सत्य बन आये दोष बहुत निर्झर
सजा झेल लेना सहर्ष प्रभु हाथ साथ छोडना नही
टेर रहा करतलावलम्बी मुरली तेरा मुरलीधर ॥२६०॥ ]]> https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%a4%e0%a5%87%e0%a4%b0%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%b2%e0%a5%80%e0%a4%a7%e0%a4%b0-48/feed/ 0 मुरली तेरा मुरलीधर 47 https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%a4%e0%a5%87%e0%a4%b0%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%b2%e0%a5%80%e0%a4%a7%e0%a4%b0-47/ https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%a4%e0%a5%87%e0%a4%b0%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%b2%e0%a5%80%e0%a4%a7%e0%a4%b0-47/#respond Sun, 21 Aug 2011 14:24:00 +0000

खिल हँसता सरसिज प्रसून तूँ रहा भटकता मन मधुकर
डाली सूनी रही रिक्त तू खोज न सका कमल निर्झर
विज्ञ न था निकटतम धुरी यह तेरी ही मधुर सुरभि
टेर रहा निज सौरभप्राणा मुरली तेरा मुरलीधर ॥२५१॥

हा धिक बीत रहा तट पर ही मन्द समय तेरा मधुकर
तू बैठा सिर लादे मुरझा तृण तरु दल डेरा निर्झर
क्या शून्यता निहार रहा  जो हटा पन्थ हारा हर
टेर रहा  आन्नदावर्ता मुरली तेरा मुरलीधर॥२५२॥

खिले सुमन नव नव मधुरितु ने दी उडेल थाती मधुकर
ठिठक किनारे तू सहेजता झरी पीत पती निर्झर
निश्चित ही उतार देना है जलनिधि मे नौका बेरा
टेर रहा अनूभुतिउत्सवा मुरली तेरा मुरलीधर॥२५३॥

वह आया आ बैठ गया अत्यत पास तेरे मधुकर
छू जाती निद्रा को उसकी श्वास निकटतम हा निर्झर
गयी न फ़िर भी नीद निगोडी चूक गया उसका दर्शन
टेर रहा निद्रानिर्मूला मुरली तेरा मुरलीधर॥२५४॥

तू हतभाग्य अधेरे मे ही खडा समीप रहा मधुकर
ज्योती न कभी टिमटिमायी सूना विलखता दीप निर्झर
उर्जस्वित कामना अनल से उसका मूढ न किया ज्वलित
टेर रहा है ज्योतिनिर्झरी मुरली तेरा मुरलीधर॥२५५॥
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अन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ –
# शील और अनुशासन : सच्चा शरणम ]]> https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%a4%e0%a5%87%e0%a4%b0%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%b2%e0%a5%80%e0%a4%a7%e0%a4%b0-47/feed/ 0 का करबऽ मंत्री जी : चकाचक बनारसी https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a4%ac%e0%a4%bd-%e0%a4%ae%e0%a4%82%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%9c%e0%a5%80-%e0%a4%9a%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%9a%e0%a4%95-%e0%a4%ac%e0%a4%a8/ https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a4%ac%e0%a4%bd-%e0%a4%ae%e0%a4%82%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%9c%e0%a5%80-%e0%a4%9a%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%9a%e0%a4%95-%e0%a4%ac%e0%a4%a8/#comments Mon, 15 Aug 2011 03:26:00 +0000 Chakachak-Banarasi

चेत गइल जनता त बोलऽ हे मंत्री जी फिर का करबऽ ।

दरे दरे गोड़ धरिया कइलऽ दाँत निपोरत रहलऽ मालिक,
भिखमंगई, चन्दा व्यौरा पर सच्चा जीयत रहलऽ मालिक,
कांगरेसी तू रहलऽ नाहीं झटके में बन गइलऽ मालिक,
बाप दादा भीख मंगलन, तू एम०एल०ए० हो गइलऽ मालिक,
कुर्सी निकल गइल त बोलऽ फिर केकर तू चीलम भरबऽ ॥१॥

सत्ता में अउतै तू मालिक दिव्य डुबइलऽ देश कऽ लोटिया,
दरे दरे उदघाटन कइलऽ पेड़ लगउलऽ रखलऽ पटिया,
घूसो लेहलऽ टैक्स बढ़इलऽ सबै काम तू कइलऽ घटिया,
आज देश कंगाल हो गयल, कइलऽ खड़ी देश कऽ खटिया,
खूँटा में बँधलेस जनता त कइसे खेत देस क चरबऽ ॥।२॥

पाँच बरस अस्वासस्न छोड़ के जनता के कुछ देहलऽ नाहीं,
अउर तू का देतऽ जनता के रासन तक त देहलऽ नाहीं,
सेतै देहलऽ परमिट, कोटा, लाइसेंस का लेहलऽ नाहीं ?
सच बोले का खानदान के सरकारी पद देहलऽ नाहीं ?
यदि हिसाब लेहलेस जनता त फिर केकर सोहरइबऽ धरबऽ ॥३॥

वादा पर वादा कइलऽ पर वादा पूरा कइलऽ नाहीं,
बेइमानन क साथ निभइलऽ बेइमानन के धइलऽ नाहीं,
हौ सेवा करतब हमार का भाषन में तू कहलऽ नाहीं ?
बोलऽ बे मतलब तू का दौरा पर दौरा कइलऽ नाहीं ?
मर के तू शैतानै होबऽ मरले पर तू नाहीं मरबऽ ॥४॥

जनता के भूखा मरलऽ पर हचक हचक के खइलऽ सच्चा,
कभी बाजरा कांड, कभी लाइसेंस कांड तू कइलऽ सच्चा,
तू चुनाव के जीतै खातिर तस्करवन के धइलऽ सच्चा,
सबके धर के लोकतंत्र खतरे में हौ समझउलऽ सच्चा,
सोझे संसद भंग न होई सोझे तू सब नाहीं टरबऽ ॥५॥

सोचत होबऽ अपने मन में की सब जूता नाप क हउवै,
सोचत होबऽ अपने मन में की मंत्री पद टाप क हउवै,
तनिको नाहीं सोचत होबऽ की ई कुल धन पाप क हउवै,
छोड़तऽ काहे नाहीं कुर्सी का ऊ तोहरे बाप क हउवै,
कइले चालऽ पाप एकजाई यही जनम में सब कुछ भरबऽ ॥६॥

सब कुछ छोड़बऽ सीधे-सीधे तोप चली न चली तमंचा,
जाग रहल हौ देस चकाचक रोजै होई खमची खमचा,
गिनवाई जौने दिन जनता दिव्य लगइबऽ ओ दिन खोमचा,
निश्चित भुक्खन मर जइहैं ओ दिन तोहार कुल चमची चमचा,
पाँच बरस तू रह गइलऽ त अबकी मालिक देश के गरबऽ ॥७॥

–चकाचक बनारसी
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सबसे सुघर मोर गाँव रे.. https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%b8%e0%a4%ac%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a5%81%e0%a4%98%e0%a4%b0-%e0%a4%ae%e0%a5%8b%e0%a4%b0-%e0%a4%97%e0%a4%be%e0%a4%81%e0%a4%b5-%e0%a4%b0%e0%a5%87/ https://pankil.ramyantar.com/%e0%a4%b8%e0%a4%ac%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a5%81%e0%a4%98%e0%a4%b0-%e0%a4%ae%e0%a5%8b%e0%a4%b0-%e0%a4%97%e0%a4%be%e0%a4%81%e0%a4%b5-%e0%a4%b0%e0%a5%87/#comments Fri, 05 Nov 2010 09:13:00 +0000 परसत धरनि सरस सोहराइल सघन रसाल की  छाँव रे
कोकिल कीर मधुर सुर कूँजत कागा करै काँव-काँव रे ।
तँह विधुबदनी बइसि बतियावैं टेरि परसपर नाँव रे
सरगो के सखि ललचावै सलोना सबसे सुघर मोर गाँव रे ॥


अलिदल नलिनीं झुलावैं री आली निरखु तलइया ।
घनि बँसवरिया में पुरुबी बयरिया
रसे रसे बँसुरी बजावै री आली, निरखु तलइया ।
सर बर तरुनी नयन दुइ मछरी
कमल कै हथवा हिलावैं री आली, निरखु तलइया ।
मोजरल अमवा पियरि सरसोइया
फुलल परसवा बोलावै री आली, निरखु तलइया ।
अलिदल नलिनीं झुलावैं री आली निरखु तलइया


मोरी सहेलिया रे,
गउवैं खातिर छछनै मोर परान मोरी सहेलिया रे ।

खरी जिउतिया भुखैं मतरिया,
ननदो करैं ओसार अगोरिया – मोरी सहेलिया रे
पंडित भोरे भरैं भैरवीतान, मोरी सहेलिया रे –
गउवैं खातिर छछनै मोर परान मोरी सहेलिया रे ।


नाउन धोबिन धनि मलिहोरी,
पावैं पहुरा खोरिन खोरी – मोरी सहेलिया रे
स्वाती चितरा लहरैं गोइड़ै धान, मोरी सहेलिया रे –
गउवैं खातिर छछनै मोर परान मोरी सहेलिया रे ।

कतहूँ बरगद तर चौपाला,
कतहूँ बजै ढोल पर आल्हा – मोरी सहेलिया रे
कतहूँ बिरहा गावैं ग्वाला रेखभिनान, मोरी सहेलिया रे –
गउवैं खातिर छछनै मोर परान मोरी सहेलिया रे ।


जुग-जुग जीयै सखी मोर गउवाँ ।

कचरस सोन्ह करहवा कै खुरचन
लिटका लटीयै सखी मोर गउवाँ –
जुग-जुग जीयै सखी मोर गऊवाँ ।

बुढ़-ठेल तिरिया ओसरिया में ओठघल
लेवन सीयैं सखी मोर गउवाँ –
जुग-जुग जीयै सखी मोर गऊवाँ ।


गउवाँ इन्नर की रजधानी अखियाँ लखि ललचानी ना ।

दादुर मोर पपीहरा बोलै ओनवल घटा सुहानी ना
मड़इन लतर ललित अरुझानी, अखियाँ लखि ललचानी ना ।

सम्मय, बरम्ह, दइतरा, काली, भैरव की डिहवानी ना
माई सुघर मनौती मानी अखियाँ लखि ललचानी ना ।

ओक्का-बोक्का तीन तलौका, ’पंकिल’ गढ़ैं कहानी ना
सोहर गावैं धिया चुल्हानी, अँखिया लखि ललचानी ना ।

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