सच्चा कहता अरे बावरे! द्वारे द्वारे
घूम रहा क्यों अपना भिक्षा पात्र पसारे।
बहुत चकित हूँ, प्रबल महामाया की माया
किससे क्या माँगू, सबको भिक्षुक ही पाया॥९॥
सब धनवान भिखारी हैं, भिक्षुक नरेश हैं
कहाँ मालकीयत जब तक वासना शेष है।
माँग बनाती हमें भिखारी यही पहेली
नृप को भी देखा फैलाये खड़ा हथेली॥१०॥
माँगे मिल भी जाये तो रस घट जाता है
बिन माँगे पाने वाला गौरव पाता है।
माँग माँग कर यदि कोई कुछ पा भी जाता
तो देने वाला लाखों एहसान जताता॥११॥
सच्चा मन है नहीं माँग में किंचित रस हो
प्रभु से ही माँगो यदि करती माँग विवश हो।
भक्त बिना माँगे ही उससे सब पा जाता
प्रभु प्रसाद पर भी प्रसाद अपना बरसाता॥१२॥
यदि माँगा तो तुमने प्रभु का किया अनादर
उठते ही वासना रुकेंगे संवादी स्वर।
सेतु भंग हो गया मिटी ईश्वर से ममता
धन पद मान प्रतिष्ठा में ही है उत्सुकता॥१३॥
धन को प्रभु से बड़ा बना कर साध्य कर दिया
निज याचना पूर्ति हित प्रभु को बाध्य कर दिया।
तेरी सब प्रार्थना वासना का प्रक्षेपण
इसीलिए तो प्रभु-प्रसाद का रुकता वर्षण॥१४॥
सच्चा कहता है हम मंगन से क्या माँगे
बस प्रभु की मर्जी को ही रहने दें आगे।
नहीं धरा ही प्यासी जलधर भी आतुर है
जल वर्षण हित तरस रहा उसका भी उर है॥१५॥
जैसे ही तुम झुके ईश करुणा के जलधर
तुम्हें घेरकर स्नेह नीर बरसेंगे झर-झर।
प्रभु स्नेहिल कर सहलायेंगे पीठ तुम्हारी
सच्चा सींचेगा तेरी मुरझी फुलवारी॥१६॥

सच्चा लहरी : दो
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रचनाकार परिचय
नाम: प्रेम नारायण ’पंकिल’
जन्म : मई,१९४६;
शिक्षा : एम० ए० (अंग्रेजी,हिन्दी,),साहित्यरत्न;
अवकाश प्राप्त प्रवक्ता(अंग्रेजी)
सकलडीहा इंटर कॉलेज, सकलडीहा, चन्दौली (उ० प्र०);
संपर्क : सकलडीहा बाज़ार, सकलडीहा,चन्दौली (उ० प्र०)
जन्म : मई,१९४६;
शिक्षा : एम० ए० (अंग्रेजी,हिन्दी,),साहित्यरत्न;
अवकाश प्राप्त प्रवक्ता(अंग्रेजी)
सकलडीहा इंटर कॉलेज, सकलडीहा, चन्दौली (उ० प्र०);
संपर्क : सकलडीहा बाज़ार, सकलडीहा,चन्दौली (उ० प्र०)

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मौन बैठे हो क्यो मेरे अशरण शरण। इस अभागे को क्या मिल सकेगा नहीं, हे कृपामय तेरा कमल-कोमल-चरण। मौन बैठे हो क्यो मेरे अशरण शरण।

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ब्लॉग प्रकाशक परिचय

- Himanshu Pandey
- A blogger since 2008. A teacher since 2010, A father since 2010. Reading, Writing poetry, Listening Music completes me. Internet makes me ready. Trying to learn graphics, animation and video making to serve my needs.

Beautiful lines.
ReplyDeleteसे ही तुम झुके ईश करुणा के जलधर
ReplyDeleteतुम्हें घेरकर स्नेह नीर बरसेंगे झर-झर।
प्रभु स्नेहिल कर सहलायेंगे पीठ तुम्हारी
सच्चा सींचेगा तेरी मुरझी फुलवारी॥१६॥
..बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
बहुत आभार!
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