खिल हँसता सरसिज प्रसून तूँ रहा भटकता मन मधुकर डाली सूनी रही रिक्त तू खोज न सका कमल निर्झर विज्ञ न था निकटतम धुरी यह तेरी ही मधुर सुरभ...
खिल हँसता सरसिज प्रसून तूँ रहा भटकता मन मधुकर
डाली सूनी रही रिक्त तू खोज न सका कमल निर्झर
विज्ञ न था निकटतम धुरी यह तेरी ही मधुर सुरभि
टेर रहा निज सौरभप्राणा मुरली तेरा मुरलीधर ॥२५१॥
हा धिक बीत रहा तट पर ही मन्द समय तेरा मधुकर
तू बैठा सिर लादे मुरझा तृण तरु दल डेरा निर्झर
क्या शून्यता निहार रहा जो हटा पन्थ हारा हर
टेर रहा आन्नदावर्ता मुरली तेरा मुरलीधर॥२५२॥
खिले सुमन नव नव मधुरितु ने दी उडेल थाती मधुकर
ठिठक किनारे तू सहेजता झरी पीत पती निर्झर
निश्चित ही उतार देना है जलनिधि मे नौका बेरा
टेर रहा अनूभुतिउत्सवा मुरली तेरा मुरलीधर॥२५३॥
वह आया आ बैठ गया अत्यत पास तेरे मधुकर
छू जाती निद्रा को उसकी श्वास निकटतम हा निर्झर
गयी न फ़िर भी नीद निगोडी चूक गया उसका दर्शन
टेर रहा निद्रानिर्मूला मुरली तेरा मुरलीधर॥२५४॥
तू हतभाग्य अधेरे मे ही खडा समीप रहा मधुकर
ज्योती न कभी टिमटिमायी सूना विलखता दीप निर्झर
उर्जस्वित कामना अनल से उसका मूढ न किया ज्वलित
टेर रहा है ज्योतिनिर्झरी मुरली तेरा मुरलीधर॥२५५॥
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अन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ -
# शील और अनुशासन : सच्चा शरणम
डाली सूनी रही रिक्त तू खोज न सका कमल निर्झर
विज्ञ न था निकटतम धुरी यह तेरी ही मधुर सुरभि
टेर रहा निज सौरभप्राणा मुरली तेरा मुरलीधर ॥२५१॥
हा धिक बीत रहा तट पर ही मन्द समय तेरा मधुकर
तू बैठा सिर लादे मुरझा तृण तरु दल डेरा निर्झर
क्या शून्यता निहार रहा जो हटा पन्थ हारा हर
टेर रहा आन्नदावर्ता मुरली तेरा मुरलीधर॥२५२॥
खिले सुमन नव नव मधुरितु ने दी उडेल थाती मधुकर
ठिठक किनारे तू सहेजता झरी पीत पती निर्झर
निश्चित ही उतार देना है जलनिधि मे नौका बेरा
टेर रहा अनूभुतिउत्सवा मुरली तेरा मुरलीधर॥२५३॥
वह आया आ बैठ गया अत्यत पास तेरे मधुकर
छू जाती निद्रा को उसकी श्वास निकटतम हा निर्झर
गयी न फ़िर भी नीद निगोडी चूक गया उसका दर्शन
टेर रहा निद्रानिर्मूला मुरली तेरा मुरलीधर॥२५४॥
तू हतभाग्य अधेरे मे ही खडा समीप रहा मधुकर
ज्योती न कभी टिमटिमायी सूना विलखता दीप निर्झर
उर्जस्वित कामना अनल से उसका मूढ न किया ज्वलित
टेर रहा है ज्योतिनिर्झरी मुरली तेरा मुरलीधर॥२५५॥
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अन्य चिट्ठों की प्रविष्टियाँ -
# शील और अनुशासन : सच्चा शरणम
bahut hi sudar shabdo ke chayan ne aapki aapki rachna me chaar
ReplyDeletechand laga diye hain
bahut bahut hi achhiprastuti
poonam
Sundara Kanda is nothing but Kundalini Yoga
ReplyDeleteValmiki is a Vedic Sage.
He wrote the first epic of the human civilization
to spread kundalini Yoga
Sundara Kanda is nothing but Kundalini Yoga
Trijata Swapna in Sundara Kanda is nothing but Gayathri Mantra
Sita is Aadi Paraa Shakthi .
Hanuman and Ravana are Kundalini Yogis
of Samaya and Kaula Paths.
Please read Shodasi : Secrets of the Ramayana
by Seshendra Sharma ( http://seshendrasharma.weebly.com )
Reviews: www.facebook.com/shodasi/
Sundara Kanda is nothing but Kundalini Yoga
Please read :
Shodasi : Secrets of the Ramayana
Author : Seshendra Sharma
http://seshendrasharma.weebly.com
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In this path breaking research work , coming after
ages after Valmiki penned the first epic of Human Civilisation,
Seshendra Sharma analyses that
Sundara Kanda is Kundalini Yoga , Maharshi wrote
this Epic to spread Kundalini Yoga among the masses of his times.
For Reviews : www.facebook.com/shodasi/
Contact : Saatyaki S/o Seshendra Sharma
saatyaki@gmail.com , +91 9441070985 , 7702964402