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पाँच-छः वर्ष पहले हमारे कस्बे में हुए एक कवि-सम्मेलन, जो आकाशवाणी वाराणसी के तत्कालीन निदेशक श्री शिवमंगल सिंह ’मानव” की पुस्तक के विमोचन प...
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सच्चा कहता अरे बावरे! द्वारे द्वारे घूम रहा क्यों अपना भिक्षा पात्र पसारे। बहुत चकित हूँ, प्रबल महामाया की माया किससे क्या माँगू, सबको...
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Photo source : Google पीसत जतवा जिनिगिया सिरइलीं दियवा कै दीयै भर रहलैं रे सजनी। मिरिगा जतन बिन बगिया उजरलैं कागा बसमती ले परइलैं ...
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था कहा "पिंजरित कीर मूक है हरित पंख में चंचु छिपा। विधु-नलिन-नेत्र-मुद्रित-रजनी-मुख रहा चूम तम केश हटा। क्या तुमने भ्रम से शशि को ही रव...
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तेरे चारों ओर वही कर रहा भ्रमण है खुले द्वार हों तो प्रविष्ट होता तत्क्षण है उसकी बदली उमड़ घुमड़ रस बरसाती है जन्म-जन्म की रीती झोल...
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अनासक्त सब सहो जगत के झंझट झगड़े ऐसा यत्न करो आँखों से मन मत बिगड़े। मौन साध नासाग्र दृष्टि रख नाम सम्हालो मन छोटा मत करो काम कल पर...
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संत बहुत हैं पर सच्चा अद्भुत फकीर है गहन तिमिर में ज्योति किरण की वह लकीर है। राका शशि वह मरु प्रदेश की पयस्विनी है अति सुहावनी उसके गी...
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तेरे चारों ओर वही कर रहा भ्रमण है खुले द्वार हों तो प्रविष्ट होता तत्क्षण है उसकी बदली उमड़ घुमड़ रस बरसाती है जन्म-जन्म की रीती झोल...
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पाँच-छः वर्ष पहले हमारे कस्बे में हुए एक कवि-सम्मेलन, जो आकाशवाणी वाराणसी के तत्कालीन निदेशक श्री शिवमंगल सिंह ’मानव” की पुस्तक के विमोचन प...
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था कहा "पिंजरित कीर मूक है हरित पंख में चंचु छिपा। विधु-नलिन-नेत्र-मुद्रित-रजनी-मुख रहा चूम तम केश हटा। क्या तुमने भ्रम से शशि को ही रव...
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व्रजमंडल नभ में उमड़-घुमड़ घिर आए आषाढ़ी बादल । उग गया पुरंदर धनुष ध्वनित उड़ चले विहंगम दल के दल । उन्मत्त मयूरी उठी थिरक श्यामली निरख नीरद म...
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सच्चा कहता अरे बावरे! द्वारे द्वारे घूम रहा क्यों अपना भिक्षा पात्र पसारे। बहुत चकित हूँ, प्रबल महामाया की माया किससे क्या माँगू, सबको...
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सुधि करो अंक ले मुझे कहा था अभीं अभीं चंदा निकला है कैसे कहती ढल गयी निशा लाई है उषा वियोग- बाला है । बोलते कहाँ है अरुणचूड़ किस खग को उड़ते...
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प्रिय ! इस विस्मित नयना को कब आ बाँहों में कस जाओगे । अपना पीताम्बर उढ़ा प्राण ! मेरे दृग में बस जाओगे । प्रिय! तंडुल-पिंड-तिला वेष्टित...
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परिमल-सम्पुट पिक-स्वर-गुंजित उन्मन मीठे तीसरे पहर । जाने किस अनुकम्पा में प्रिय ! झुक गए ललक मम चरणों पर । नटखटपन में जहर गयी प्राण!कुंतल मे...