कोना कोना प्रियतम का जाना पहचाना है मधुकर इठलाता अटपटा विविध विधि आ दुलरा जाता निर्झर शब्द…
चिर विछोह की अंतहीन तिमिरावृत रजनी में मधुकर, फिरा बहुत बावरे अभीं भी अंतर्मंथन कर निर्झर सुन…
सुन अनजान प्राणतट का मोहाकुल आवाहन मधुकर रस सागर की तड़प भरी सब चाहें ममतायें निर्झर स्मरण…
बिक जा बिन माँगे मन चाहा मोल चुका देता मधुकर जगत छोड़ देता वह आ जीवन नैया…
अपने ही लय में तेरा लय मिला मिला गाता मधुकर अक्षत जागृति कवच पिन्हा कर गुरु अभियान…
बार बार पथ घेर घेर वह टेर टेर तुमको मधुकर तेरे रंग महल का कोना कोना कर…