स्वाद सुधा में है पदार्थ में स्वाद न पायेगा मधुकर सुख तो सब उसे सच्चे प्रिय में…
इन्द्रिय घट में भक्ति रसायन भर भर चखता रह मधुकर तन्मय चिन्तन सच्चा रस में देता तुम्हें…
अहं रहित मह मह महकेंगे तेरे प्राण सुमन मधुकर स्निग्ध चाँदनी नहला देगी चूमेगा मारुत निर्झर तुम्हें…
अपनी ही विरचित कारा में बंधा तड़पता तू मधुकर अपनी ही वासना लहर से पंकिल किया प्राण…
वह कितनी सौभाग्यवती है अभिरामा वामा मधुकर कुलानन्दिनी कीर्तिसुता की अंश स्वरुपा वह निर्झर उसकी पद नख…
भर जाते नख शिख पावस घन विकल बरसने को मधुकर जितनी प्यासी भू उतने ही प्यासे हैं…