मुरली तेरा मुरलीधर 14
कोटि काम सुन्दर गुण मन्दिर कोटि कला नायक मधुकर अपने हृदयेश्वर के आगे थिरक थिरक नाचो निर्झर उर वृन्दावन चारी को मन दे उनके मन वाला बन टेर रहा...
कोटि काम सुन्दर गुण मन्दिर कोटि कला नायक मधुकर अपने हृदयेश्वर के आगे थिरक थिरक नाचो निर्झर उर वृन्दावन चारी को मन दे उनके मन वाला बन टेर रहा...
बस अपने ही लिये रचा है तुमको प्रियतम ने मधुकर अन्य रचित उसकी चीजों पर क्यों मोहित होता निर्झर श्वांस श्वांस में बसा तुम्हारे रख अपना विश्वास...
नहीं भागते हुए जलद के संग भागता नभ मधुकर चलते तन के संग न चलता कभीं मनस्वी मन निर्झर किससे क्या लेना देना तेरा तो सच्चा से नाता टेर रहा अपनत...