मुरली तेरा मुरलीधर 11
अगणित जन्मों की ले दारुण कर्मश्रृंखलायें मधुकर जब जो भी दीखता उसी से व्याकुल पूछ रहा निर्झर उसका कौन पता बतलाये नाम रुप गति अकथ कथा टेर रहा ...
अगणित जन्मों की ले दारुण कर्मश्रृंखलायें मधुकर जब जो भी दीखता उसी से व्याकुल पूछ रहा निर्झर उसका कौन पता बतलाये नाम रुप गति अकथ कथा टेर रहा ...
आह्लादित अंतर वसुंधरा दृग मोती ले ले मधुकर भावतंतु में गूंथ हृदय की मधुर सुमन माला निर्झर पिन्हा ग्रीव में आत्मसमर्पण कर होती कृतार्थ धरणी ट...
किससे मिलनातुर निशि वासर व्याकुल दौड़ रहा मधुकर सच्चे प्रभु के लिये न तड़पा बहा न नयनों से निर्झर व्यर्थ बहुत भटका उनके हित अब दिनर...