था कहा "पिंजरित कीर मूक है हरित पंख में चंचु छिपा। विधु-नलिन-नेत्र-मुद्रित-रजनी-मुख रहा चूम तम केश हटा। क्या तुमने भ्रम से शशि को ही रव...
था कहा "पिंजरित कीर मूक है हरित पंख में चंचु छिपा।
विधु-नलिन-नेत्र-मुद्रित-रजनी-मुख रहा चूम तम केश हटा।
क्या तुमने भ्रम से शशि को ही रवि समझा तम-मृग-आखेटी।
वह नभ-सरिता में नहा रही है चंद्रज्योति-पंखिनी बेटी ।
देखो तो तेरी गौर कांति से उसका गौरव गया छला ।
यह मुझे भुलावे में रखने की किससे सीखी काम-कला ?"
हा! प्रिय कुंकुम-मलिता दलिता बावरिया बरसाने वाली-
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली ॥३६॥
तुमने ही तो था कहा प्राण! "सखि कितना कोमल तेरा तन ?
मोहक मृणाल-किसलय शिरीष-सुमनों का करता मद-मंथन।
बस सुमन-चयन-अभिलाषा से ही होती अमित अरुण अंगुली ।
हो जाते पदतल लाल लाल जब कभीं महावर बात चली।
थकती काया स्मृति से ही होगा सुरभित अंगराग-लेपन ।
कर गया ग्लानि-प्रस्वेद-ग्रथन कोमल मलमल का झीन वसन ।
हा! इस दुलार हित नित विकला बावरिया ने बरसाने वाली-
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली ॥३७॥
विधु-नलिन-नेत्र-मुद्रित-रजनी-मुख रहा चूम तम केश हटा।
क्या तुमने भ्रम से शशि को ही रवि समझा तम-मृग-आखेटी।
वह नभ-सरिता में नहा रही है चंद्रज्योति-पंखिनी बेटी ।
देखो तो तेरी गौर कांति से उसका गौरव गया छला ।
यह मुझे भुलावे में रखने की किससे सीखी काम-कला ?"
हा! प्रिय कुंकुम-मलिता दलिता बावरिया बरसाने वाली-
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली ॥३६॥
तुमने ही तो था कहा प्राण! "सखि कितना कोमल तेरा तन ?
मोहक मृणाल-किसलय शिरीष-सुमनों का करता मद-मंथन।
बस सुमन-चयन-अभिलाषा से ही होती अमित अरुण अंगुली ।
हो जाते पदतल लाल लाल जब कभीं महावर बात चली।
थकती काया स्मृति से ही होगा सुरभित अंगराग-लेपन ।
कर गया ग्लानि-प्रस्वेद-ग्रथन कोमल मलमल का झीन वसन ।
हा! इस दुलार हित नित विकला बावरिया ने बरसाने वाली-
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली ॥३७॥
थकती काया स्मृति से ही होगा सुरभित अंगराग-लेपन ।
ReplyDeleteकर गया ग्लानि-प्रस्वेद-ग्रथन कोमल मलमल का झीन वसन ।
हा! इस दुलार हित नित विकला बावरिया ने बरसाने वाली-
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली ॥३७॥ .....बहुत सुन्दर. दिल को छूने वाली पंक्तियां !! कभी हमारे शब्द-सृजन (www.kkyadav.blogspot.com) पर भी आयें.
achchhi rachna hai.
ReplyDeleteअतिसुन्दर प्रस्तुति, साधुवाद !! मेरे ''यदुकुल'' पर आपका स्वागत है....
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता.
ReplyDeleteधन्यवाद
एक यही ब्लॉग है या रम्यन्तर की कुछ रचनाएं हैं जिन्हें बहुत धीरे-धीरे और रस ले-ले कर पढता हूँ.
ReplyDeleteHimanshunji pehele to shikayat ke aap bohot dinonse hamare blogpe nahee aaye...khair...ye mazaaq me kaha...mai aatee rehtee hun par is tarahkee rachnaonpe tippanee dene jaisee meree haisiyathi nahee....
ReplyDeleteBhashaki pracheentaa ise ek gambheer aur goodh swaroop detee hai, waheen vilakshan garimaa bhee pradan karti hai...
sunder bhavmay kavita ke liye bdhaai
ReplyDeleteवाह.... शानदार प्रस्तुति है भाई..
ReplyDeleteतत्सम युक्त शब्दावली में सुन्दर रचना, हार्दिक बधाई।
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