बावरिया बरसाने वाली 20
कहते थे हे प्रिय! “स्खलित-अम्बरा मुग्ध-यौवना की जय हो । अँगूरी चिबुक प्रशस्त भाल दृग अरूणिम अधर हास्यमय हो । वह गीत व्यर्थ जिसमें बहती अप्सर...
कहते थे हे प्रिय! “स्खलित-अम्बरा मुग्ध-यौवना की जय हो । अँगूरी चिबुक प्रशस्त भाल दृग अरूणिम अधर हास्यमय हो । वह गीत व्यर्थ जिसमें बहती अप्सर...
सुधि करो कहा था,"कभीं निभृत में सजनी! तेरा घूँघट-पट। निज सिर पर सरका लूँ फ़िर चूमूँ नत-दृग अधर-सुधा लटपट। छेड़ना करुण पद कुपित कोकिला रात...
कहते थे प्राण "अरी, तन्वी! मैं कृष कटि पर हो रही विकल । कह रही करधनी ठुनक-ठुनक रो रहे समर्थन में पायल । भय है उरोज-परिवहन पवन ...
था कहा "पिंजरित कीर मूक है हरित पंख में चंचु छिपा। विधु-नलिन-नेत्र-मुद्रित-रजनी-मुख रहा चूम तम केश हटा। क्या तुमने भ्रम से शशि को ही रव...