प्रिय ! इस विस्मित नयना को कब आ बाँहों में कस जाओगे । अपना पीताम्बर उढ़ा प्राण ! मेरे दृग में बस जाओगे । प्रिय! तंडुल-पिंड-तिला वेष्टित...
प्रिय ! इस विस्मित नयना को कब आ बाँहों में कस जाओगे ।
अपना पीताम्बर उढ़ा प्राण ! मेरे दृग में बस जाओगे ।
प्रिय! तंडुल-पिंड-तिला वेष्टित सी गाढ़ालिंगन समुहाई ।
युग गए काय यह जल पय-सी तव तन में नहीं समा पायी ।
हो जहाँ बसे क्या वहाँ प्राण ! कोकिला कभीं बोलती नहीं ।
जल गया मदन-तन क्या मंथर, मलयज बयार डोलती नहीं ।
सह सकती कैसे विषम बाण बावरिया बरसाने वाली -
क्या प्रान निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली ॥३२॥
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मम-अधर दबा करते थे सी-सी ध्वनित सम्पुटक चुम्बन जब ।
पृथु उरु उरोज का बढ़ जाता था वसन विहीन विकम्पन तब ।
प्रिय! तेरे स्मित कपोल चिबुकाधर कुंद दशन से डंसती थी ।
मैं हार हार कर भी चुम्बन की द्युत क्रिया में फंसती थी ।
पूछा था मैं तो नित अतृप्त क्या तुम भी प्रिये ! तरसती हो ?
निद्रित पलकों में भी आ आ क्यों चपल बालिके बसती हो ?
यह मदन-विनोद-विछोह-विकल बावरिया बरसाने वाली -
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन की वनमाली ॥ ३३॥
अपना पीताम्बर उढ़ा प्राण ! मेरे दृग में बस जाओगे ।
प्रिय! तंडुल-पिंड-तिला वेष्टित सी गाढ़ालिंगन समुहाई ।
युग गए काय यह जल पय-सी तव तन में नहीं समा पायी ।
हो जहाँ बसे क्या वहाँ प्राण ! कोकिला कभीं बोलती नहीं ।
जल गया मदन-तन क्या मंथर, मलयज बयार डोलती नहीं ।
सह सकती कैसे विषम बाण बावरिया बरसाने वाली -
क्या प्रान निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली ॥३२॥
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मम-अधर दबा करते थे सी-सी ध्वनित सम्पुटक चुम्बन जब ।
पृथु उरु उरोज का बढ़ जाता था वसन विहीन विकम्पन तब ।
प्रिय! तेरे स्मित कपोल चिबुकाधर कुंद दशन से डंसती थी ।
मैं हार हार कर भी चुम्बन की द्युत क्रिया में फंसती थी ।
पूछा था मैं तो नित अतृप्त क्या तुम भी प्रिये ! तरसती हो ?
निद्रित पलकों में भी आ आ क्यों चपल बालिके बसती हो ?
यह मदन-विनोद-विछोह-विकल बावरिया बरसाने वाली -
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन की वनमाली ॥ ३३॥
अजी बहुत कठिन कठिन हिन्दी लिखते हो,लेकिन लिखते बहुत खुब सुरत हो. धन्यवाद
ReplyDeleteरोम-रोम झनझना दिया है.
ReplyDeleteमुझको झुनझुना बना दिया है.
अब तभी रुकेगी थिरक मेरी,
जब बांह मेरी तुम थामोगे.
कमाल है, आपकी कविता ने छुआ और हमने तुंरत ही अपने हृदयोद्गार प्रकट किए वह भी उसी प्रकार से. यह आपका ही जादू है आदरणीय कि मैं भी पल भर को मतवाला हो उठा, झुनझुना हो गया.
बहुत ही सुंदर भाव लिये बावरी रादा की ाकुलता दर्शाने वाली कविता
ReplyDeleteराधा तथा आकुलता पढें । क्षमस्व ।
ReplyDeletevery nice....
ReplyDeleteआनन्द ही आनन्द है आपकी इस पोस्ट मे ! मन मगन हो गया !
ReplyDeleteराम् राम !